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लोगों ने पूछाः ज्योतिषी महाराज को कला का क्या पता? इनको हमने भूत-प्रेत उतारते भी देखा, हाथ, कुंडली पढ़ते भी देखा, ज्योतिषशास्त्र भी, मगर कला का इनको कुछ पता है, यह तो हमें पता ही नहीं था। आज तक ये कहां छिपे रहे?
तो संयोजकों ने कहा, इन्हें कला का कुछ पता भी नहीं है, लेकिन यह कला ऐसी है कि इसमें पता होने का सवाल कहां है? और सच तो यह है कि यह कला ऐसी उलझन-भरी है कि सिर्फ ज्योतिषी ही पता लगा सकता है कि इसमें कौन-सा ठीक है, कौन-सा गलत है। ___ मैं जो कह रहा हूं, जब इकट्ठा तुम उसे फैलाओगे तो बहुत कठिन हो जायेगा, यह सच है। उसमें पता लगाना कि मैंने क्या कहा, क्या नहीं कहा, क्यों ऐसा कहा, फिर क्यों ऐसा खंडन कर दिया। चलो अच्छा ही है, भविष्य के लिए थोड़ा बौद्धिक अभ्यास होगा।
ये वक्तव्य मैं पंडितों के लिए छोड़ भी नहीं जा रहा हूं; ये तो उनके लिए छोड़ जा रहा हूं जो ध्यानी हैं। ध्यानी को समझ में आयेंगे, पंडित को समझ में नहीं आयेंगे।
तो इनके पीछे एक राज है और वह राज यह है कि ध्यानी को ही समझ में आ सकते हैं ये, पंडित को बिलकुल समझ में नहीं आयेंगे। पंडित तो कहेगा कि यह आदमी या तो पागल था या बहुत तरह के आदमी थे। ये एक आदमी के वक्तव्य नहीं हैं, कई आदमियों के वक्तव्य एक-दूसरे से मिल गये हैं, डांवाडोल हो गये हैं, गड्डमगड्ड हो गये हैं। यह कोई एक आदमी की बात नहीं हो सकती, एक आदमी इतनी बातें कैसे कह सकता है?
राज है—ये वक्तव्य पंडित के लिए छोड़े नहीं जा रहे हैं। ये वक्तव्य ध्यानी के लिए छोड़े जा रहे हैं। हां, जो ध्यान और प्रेम में डूब कर इनको पढ़ेगा, वह समझ लेगा। नहीं कि वक्तव्य समझ लेगा; समझ लेगा उसको जिसने ये दिए थे; समझ लेगा उस चैतन्य की दशा को जिसमें ये दिए गये थे; . समझ लेगा उस साक्षी-भाव को जिसमें इनका अवतरण हुआ था।
मेरे एक-एक शब्द में मेरे शून्य की थोड़ी-सी झलक रहेगी। और मेरे शब्द के आसपास खाली जगह में मेरी मौजूदगी रहेगी।
राज इनमें है; लेकिन तर्क और विचार का नहीं-ध्यान और शून्य का।
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4