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से भागे आ जाना, फिर भोजन कर लेना, फिर थोड़ी कलह पत्नी से, फिर थोड़ा सो जाना, फिर सुबह...यह तुम करते रहे हो-इसे तुम जीवन कह रहे हो? और इसी को तुम आगे भी लंबाना चाहते हो! तो तुमने शायद जाग कर देखा भी नहीं कि तुम क्या जी रहे हो। कुछ भी तो नहीं जी रहे हो, फिर भी जीवन की आशा है। इसलिए जीवन की आशा है। इसलिए जीवन की बड़ी पकड़ है। तुम अंधे भिखमंगे पर सोचना मत कि यह क्यों जी रहा है। ___यह जान कर तुम हैरान होओगे, गरीब जातियों में, गरीब देशों में आत्महत्या कम होती है। जंगली आदिवासियों में तो आत्महत्या होती ही नहीं। कोई पागल है जो अपने को मारे! आत्महत्या की संख्या बढ़ने लगती है जैसे-जैसे समाज समृद्ध होता है। धनी ही आत्महत्या करते हैं, गरीब नहीं। भिखमंगों ने कभी आत्महत्या की है, सुना तुमने ? भिखमंगा तो जीवन को इतने जोर से पकड़ता है; तुम कह रहे हो आत्महत्या! सोच भी नहीं सकता, सपना भी नहीं देख सकता।
जिसने जीवन जितना कम जीया है उतना ही जीवन को जोर से पकड़ता है। यह बात अगर तुम्हें स्पष्ट हो जाये तो रास्ते पर बड़ी सुविधा हो जायेगी। तुम भी जीवन को पकड़े हुए हो, बहुत जोर से पकड़े हुए हो! पुनर्जन्म के सिद्धांत को पकड़े हुए हो कि कोई हर्जा नहीं, यह तो गया मालूम पड़ता है अब, अब अगले में भरोसा रखो! लेकिन इस भरोसे का, इस अगले की आशा का आधारभूत कारण क्या है ? इतना ही कि तुम जीवन को देख नहीं पाये। देख लेते तो मृगमरीचिका थी।।
पहला सूत्र कहता है : 'जो व्यक्ति जीवन और मृत्यु के बीच अविचलमना है...!'
जिसका मन विचलित नहीं होता है; जो स्वस्थ रहता है; जीवन आये तो ठीक, जाये तो ठीक; मृत्यु आये तो ठीक, न आये तो ठीक; जिसके लिए अब जीवन और मृत्यु से कोई भेद नहीं पड़ता।
'वही निश्चय रूप से मुक्त है।' अब यहां एक प्रतीक-शब्द है, जो समझना : 'प्रीतियुक्त स्त्री और समीप में उपस्थित मृत्यु को देखकर...!'
तुम्हें थोड़ी हैरानी होगी कि स्त्री और मृत्यु को एक ही वचन में और एक तराजू के दो पलड़े की तरह रखने का कारण क्या होगा? कारण है। ___पूरब में जितना ही हमने गौर से समझ पायी, उतना ही हमें दिखाई पड़ा, कुछ बातें दिखाई पड़ी। एक, जन्म मिलता है स्त्री से तो निश्चित ही मृत्यु भी स्त्री से ही आती होगी। क्योंकि जहां से जन्म आता है वहीं से मृत्यु भी आती होगी। स्त्री से जब जन्म मिलता है तो मृत्यु भी वहीं से आती होगी। जहां से जन्म आया है, वहीं से जन्म खींचा भी जायेगा।
तुमने देखा, काली की प्रतिमा देखी! काली को मां कहते हैं। वह मातृत्व का प्रतीक है। और देखा गले में मनुष्य के सिरों का हार पहने हुए है! हाथ में अभी-अभी काटा हुआ आदमी का सिर लिए हुए है, जिससे खून टपक रहा है। ‘काली खप्पर वाली!' भयानक, विकराल रूप है! सुंदर चेहरा है, जीभ बाहर निकाली हुई है! भयावनी! और देखा तुमने, नीचे अपने पति की छाती पर नाच रही है। इसका अर्थ समझे ? इसका अर्थ हुआ कि मां भी है और मृत्यु भी। यह कहने का एक ढंग हुआ बड़ा काव्यात्मक ढंग है। मां भी है, मृत्यु भी! तो काली को मां भी कहते हैं, और सारा मृत्यु का प्रतीक इकट्ठा किया हुआ है। भयावनी भी है, सुंदर भी है!
धर्म अर्थात सन्नाटे की साधना
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