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जो है शैतान, वह बड़ा शक्तिशाली है। या तो यह मानो कि परमात्मा शक्तिशाली नहीं। अगर मानते हो कि परमात्मा शक्तिशाली है, सर्वशक्तिशाली है, सर्वशक्तिमान है तो फिर यह स्वीकार करो कि उसका कोई चरित्र नहीं। ___ कृष्ण की लीला में उसी परमात्मा की चरित्रहीनता का पूरा प्रतिबिंब है। शुभ को भी वही जिला रहा, अशुभ को भी वही जिला रहा। दिन भी वही बनाता रात भी वही। और जन्म भी वही देता और मौत के द्वार से भी वही तुम्हें ले जाता है। सुख भी वही बरसाता और दुख भी वही। फूल भी उसके हैं
और कांटे भी उसके। समग्र उसका है। मगर यह बड़ी खतरनाक बात हो गई। इसका मतलब यह हुआ कि तुम्हारी सब धारणायें-शुभ और अशुभ की-व्यर्थ हैं। अगर परमात्मा को जानना है तो धारणाओं से मुक्त हो जाना जरूरी है।
कृष्ण का पूरा जीवन धारणा-मुक्त है। और जिसको कृष्ण के पीछे चलना हो, उसको सारी धारणाओं से मक्त हो जाना जरूरी है। धारणा-शन्य हो कर ही तुम आह्लाद से भर सकोगे। और तब तुम देखोगे कि जो हो रहा है, ठीक है। बुरा भी ठीक है अपनी जगह। वह भी चाहिए। उसके बिना भी जीवन विरस हो जायेगा। उसके बिना भी जीवन नहीं हो सकेगा। कांटे भी चाहिए। कांटों के बिना फूल इतने सुंदर न रह जायेंगे। कांटों के कारण ही फूल इतने सुंदर हैं। फूल ही फूल हों तो बेस्वाद हो जायेंगे। कुरूपता भी चाहिए, तो ही सौंदर्य में कुछ अर्थ है। संसार भी चाहिए, तो ही मोक्ष में कुछ रस है, अन्यथा कोई रस न रह जायेगा अगर मोक्ष ही मोक्ष हो। जीवन में जो संगीत है वह विपरीत स्वरों के बीच सामंजस्य से है। __ कृष्ण की लीला कृष्णलीला नहीं कही जाती, रासलीला कही जाती है। वह परम सत्य है। उसमें कृष्ण का कोई चरित्र नहीं है, इसलिए कृष्ण को बीच में नहीं रखा जा सकता। उसमें कृष्ण के नाम से परमात्मा ही बीच में है। ___मगर कृष्ण को स्वीकार करना बड़ा कठिन मामला है उतना ही कठिन मामला है जितना परमात्मा को स्वीकार करना कठिन है। इसलिए तो तुमने छोटी-छोटी मूर्तियां बना ली हैं परमात्मा की-अपने-अपने हिसाब से, क्योंकि पूरे परमात्मा को तो स्वीकार करना बहुत कठिन है। सबने अपने-अपने घर-घूले बना लिए हैं। अपना-अपना घर में ग्रामोद्योग खोल लिया है भगवान बनाने का। अपना बना लिया, मिट्टी के गणेश जी रख लिए, पूजा इत्यादि कर ली, सिरा भी आये, झंझट मिटाई। तुमने अपना भगवान बना लिया है, क्योंकि पूरा भगवान तुम्हें घबड़ाता है, तुम्हें कंपाता है, तुम्हारे प्राण संकट में पड़ जाते हैं!
गांधी कहते थे, गीता उनकी मां है। लेकिन कृष्ण को वे कभी पूरा स्वीकार नहीं कर पाये। और उन्होंने कभी गीता के अलावा कृष्ण की कोई बात नहीं की। चुन लिया। भागवत के कृष्ण नहीं, क्योंकि वहां तो बड़ा उपद्रव है, वहां तो गांधी को बड़ी अड़चन होगी। वहां तो मोर-मुकुट बांधे हुए बांसुरी बजाते कृष्ण से गांधी का क्या मेल होगा! जरा गांधी के ओठों पर बांसुरी रख कर देखो, तो तुम खुद ही कहोगे कि आप कृपा कर बांसुरी वापस दें-या तो आप बांसुरी को नहीं जंचते या आपको बांसुरी नहीं जंचती, मगर बांसुरी वापिस करिए।
गांधी के साथ बांसुरी का कोई मेल नहीं होगा। गीता की वे बात करते थे, लेकिन वह राजनीतिक
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4