Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 421
________________ तुम कोशिश करके देखो। जिस चीज को तुम भुलाना चाहोगे, उसकी याद और आयेगी। क्योंकि भुलाने में भी तो याद आती है। भुलाने में भी तो याद हो रही है। तुम चाहते हो पत्नी भूल जाये, मायके गई है, वह नहीं भूलती है। और याद आती है। तुम चाहते हो बेटा चल बसा, शरीर छोड़ गया, भूल जाये। तुम जितना भूलने की कोशिश करते हो उतनी ही याद आती है। भूलने का मतलब क्या है? यह भी याद करने का एक ढंग है। तो याद मजबूत होती है। चाहते हो कछ, होता कुछ है। विपरीत का परिणाम होता रहता है। विपरीत परिणाम होता रहता है। ... नहीं, अगर खोपड़ी को सच में ही चाहते हो कि बंद हो जाये तो यह चाहत भी छोड़ दो कि खोपड़ी बंद हो जाये। कहना : चलना हो चल, न चलना हो न चल; हमारी तरफ से अब कोई फर्क नहीं पड़ता। यही अर्थ है समर्पण का। इसलिए यह घटना घट गई होगी। 'खयाल आया कि यह तो खोपड़ी चलती ही रहेगी, इसलिए आप ही सम्हालें!' बस इस खयाल में घटना घट गई होगी। 'आप ही सम्हालें' यह महासूत्र बन सकता है। तुमसे जो न सम्हले, मुझ पर छोड़ कर देखो। नहीं कि मैं सम्हाल लूंगा। इसकी फिक्र मत करो। तुम्हारे छोड़ने से सम्हल जाता है; मेरे सम्हालने का कहां सवाल है! मुझे तो पता भी नहीं यह कब हुआ! मैं किस-किस खोपड़ी का हिसाब रखू! इतनी खोपड़ियां हैं! तो मैंने कुछ किया, ऐसा तो मत सोचना। वह तो गलती हो जायेगी। तुम ने ही कुछ किया। तुमने छोड़ा। तुमने समर्पण किया। तुमने कहा, आप सम्हालें! यह तुम्हारा भाव ही गजब कर गया। • लोग मुझसे पूछते हैं : हम अगर आपको समर्पण करें तो कुछ होगा? मैं उनसे कहता हूं कि मेरे करने का कोई सवाल ही नहीं है। तुम्हारा समर्पण है, तुम्हारे करने से कुछ होता है। समर्पण करने से होता है। इसलिए कभी पत्थर की मूर्ति के सामने भी बैठ कर अगर तुम समर्पण कर दोगे तो वहां भी हो जायेगा। यह मत सोच लेना कि पत्थर की मूर्ति कुछ करती है। पत्थर तो पत्थर ही है। पत्थर क्या करेगा? लेकिन तमने अगर समर्पण कर दिया तो पत्थर की मर्ति तो बहाना हो गई. निमित्त हो गई. इस बहाने तुमने अपनी खोपड़ी उतार कर रख दी। तुमने कहा : अब ठीक, तू सम्हाल।। - तुम किसी भी बहाने अगर अपने को खाली कर सकते हो, कर तुम्हीं रहे हो। बहाना चाहिए। बिना बहाना मुश्किल होता है, कठिनाई होती है। इसलिए ये सब बहाने हैं। गुरु एक बहाना है। और पतंजलि ने तो योगसूत्र में कहा कि परमात्मा भी एक बहाना है। तुम बहुत घबड़ाओगे। मगर बात तो सही है। परमात्मा भी एक विधि है। परमात्मा के बहाने तुम्हें छोड़ना आसान हो जाता है। तुम कहते होः अब प्रभु तुम सम्हालो। ऐसा नहीं कि कोई वहां झपट कर सम्हाल लेता है। कोई वहां नहीं है। कोई वहां नहीं है। कोई सम्हालने वाला नहीं है। लेकिन जिस क्षण तुम छोड़ पाते हो, उसी क्षण क्रांति घट जाती है। तुम्हारे छोड़ते ही बोझ हलका हो जाता है। "जैसे ही कहा आप ही सम्हालें, तत्क्षण एक हलकापन महसूस हुआ और मैं मस्ती में डूब गया।' ___ वही ऊर्जा जो खोपड़ी में चल रही थी, मुक्त हो गई, मस्ती बन गई। न तो मैंने तुम्हें सम्हाला, न मैंने तुम्हें मस्ती दी। मस्ती उसी ऊर्जा से बन गई। वे ही अंगूर जो विचारों और शब्दों में खोये जा रहे थे, मुक्त हो गये विचार-शब्दों से। क्षण भर में मदिरा तैयार हो गई, तुम मस्त हो गये, लवलीन हो गये। तुम्हारी मस्ती तुम्हारे भीतर। तुम्हारी मधुशाला तुम्हारे भीतर। प्रभु-मंदिर यह देह री 405

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