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अब यह तुम पर निर्भर है। इसका तुम फिर वही अर्थ कर सकते हो-न धियाः प्रचोदयात्-वह हमारी बुद्धियों को प्रेरित करे। या तुम अर्थ कर सकते हो कि वह हमारी ध्यान की क्षमताओं को उकसाये। मैं तुमसे कहूंगा, दूसरे पर ध्यान रखना। पहला बड़ा संकीर्ण अर्थ है, पूरा अर्थ नहीं।
फिर ये जो वचन हैं गायत्री मंत्र जैसे, ये बड़े संगृहीत वचन हैं। इनके एक-एक शब्द में बड़े गहरे अर्थ भरे हैं। यह जो मैंने तुम्हें अर्थ किया यह शब्द के अनुसार। फिर इसका एक अर्थ होता है भाव के अनुसार। जो मस्तिष्क से सोचेगा, उसके लिए यह अर्थ कहा। जो हृदय से सोचेगा उसके लिए दूसरा अर्थ कहता हूं।
वह जो ज्ञान का पथिक है, उसके लिए यह अर्थ कहा। वह जो प्रेम का पथिक है, उसके लिए दूसरा अर्थ। वह भी इतना ही सच है। और यही तो संस्कृत की खूबी है। यही अरबी, लैटिन और ग्रीक की खूबी है। जैसे कि अर्थ बंधा हुआ नहीं है। ठोस नहीं, तरल है। सुनने वाले के साथ बदलेगा। सुनने वाले के अनुकूल हो जायेगा। जैसे तुम पानी ढालते, गिलास में ढाला तो गिलास के रूप का हो गया। लोटे में ढाला तो लोटे के रूप का हो गया। फर्श पर फैला दिया तो फर्श जैसा फैल गया। जैसे कोई रूप नहीं है, अरूप है, निराकार है। ___ अब तुम भाव का अर्थ समझोः ___ 'मां की गोद में बालक की तरह मैं उस प्रभु की गोद में बैठा हूं-ॐ। मुझे उसका असीम वात्सल्य प्राप्त है— भूः। मैं पूर्ण निरापद हूं-भुवः। मेरे भीतर रिमझिम-रिमझिम सुख की वर्षा हो रही है। और मैं आनंद में गदगद हूं-स्वः। उसके रुचिर प्रकाश से, उसके नूर से मेरा रोम-रोम पुलकित है तथा सृष्टि के अनंत सौंदर्य से मैं परम मुग्ध हूं-तत्स् वितुर्, देवस्य। उदय होता हुआ सूर्य, रंग-बिरंगे फूल, टिमटिमाते तारे, रिमझिम-रिमझिम वर्षा, कलकलनादिनी नदियां, ऊंचे पर्वत, हिमाच्छादित शिखर, झरझर करते झरने, घने जंगल, उमड़ते-घुमड़ते बादल, अनंत लहराता सागर-धीमहिः। ये सब उसका विस्तार है। हम इसके ध्यान में डूबें। यह सब परमात्मा है। उमड़ते-घुमड़ते बादल, झरने, फूल, पत्ते, पक्षी, पशु-सब तरफ वही झांक रहा है। इस सब तरफ झांकते परमात्मा के ध्यान में हम डूबें; भाव में हम डूबें। अपने जीवन की डोर मैंने उस प्रभु के हाथ में सौंप दी-याः न धियाः प्रचोदयात्। अब मैं सब तुम्हारे हाथ में सौंपता हूं, प्रभु। तुम जहां मुझे ले चलो मैं चलूंगा।
भक्त ऐसा अर्थ करेगा।
और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इनमें कोई भी एक अर्थ सच है और कोई दूसरा अर्थ गलत है। ये सभी अर्थ सच हैं। तुम्हारी सीढ़ी पर, तुम जहां हो वैसा अर्थ कर लेना। लेकिन एक खयाल रखना, उससे ऊपर के अर्थ को भूल मत जाना, क्योंकि वहां जाना है, बढ़ना है, यात्रा करनी है।
साक्षी, ताओ और तथाता
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