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डालियां कुछ ढुलमुलाने-सी लगी किस परम आनंद निधि के चरण पर विश्व सांसें, गीत गाने-सी लगी जग उठा तरु-वृंद जग सुन घोषणा पंछियों में चहचहाहट मच गई वायु का झोंका जहां आया वहां विश्व में क्यों
सनसनाहट मच गई! जैसे सुबह हवा आती है, फूलों को जगा देती है, पत्तियों को छेड़ देती है, हजार गीत उठा देती है, सोयेपन को गिरा देती है, सपने बिखेर देती है—एक जाग आ जाती है सारे जगत में! ठीक ऐसी ही, अगर तुम एक को देख लो तो तुम्हारे जीवन में एक अपूर्व गंध उठेगी, एक अपूर्व पवन आ जायेगा! तुम्हारी गंदगी, तुम्हारी बंधी हुई हवा, सड़ी हुई हवा से छुटकारा हो जायेगा। तुम्हारी सीमा गई। जहां तुमने एक को देखा, असीम आने लगा, असीम की लहरें आने लगीं। उन असीम की लहरों में ही सुख है, शांति है, चैन है।
चिति क्षिति है अद्वैत द्वैत में केवल उनका दर्शन रूप-अरूप नहीं प्रतिद्वंद्वी बंधा बिंब से दर्पण अचिर भूत में व्यक्त भूति में चिर अवधूत निरंजन शब्द-मुक्त पर शब्द-युक्त है चिंत्य अचिंत्य चिरंतन सत्य शिवम् है सत्य सुंदरम् संज्ञा स्वयं विशेषण व्यर्थ व्याकरण
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4