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• जिस चीज से तुम जुड़ जाते हो वहीं समस्या खड़ी हो जाती है। जिस चीज से तुम हट जाते हो वहीं समस्या हल हो जाती है। इसे तुम अपने जीवन में पहचानना, परखना। जहां समस्या खड़ी हो, वहां गौर से देखना। तुम जुड़ गए हो। जरा छिटको। जरा अलग होओ। इस अलग हो जाने का नाम ही साक्षी है। और जुड़ कर फिर तुम हल करना चाहते हो! आदमी की बड़ी सीमा है। जगत विराट है। समस्या बड़ी है। और हमारे पास बड़ी छोटी बुद्धि है। है ही क्या हमारे पास बुद्धि के नाम पर? कुछ विचारों का संग्रह। इसी के आधार पर हम जीवन की इस महालीला को हल करने चले हैं।
ऐसा समझो कि एक चींटी आदमी के जीवन को समझना चाहे, तो तुम हंसोगे। तुम कहोगे, पागल हो जाएगी। ऐसा समझो कि एक चींटी गीता पर सरक रही है और गीता को समझने की चेष्टा करना चाहे, तो तुम हंसोगे। तुम कहोगे, पागल हो जाएगी। लेकिन अपनी तो सोचो। हमारी हैसियत इस विराट विश्व पर चींटी से कुछ ज्यादा है? शायद चींटी तो गीता को समझ भी ले, क्योंकि गीता
और चींटी में बहुत बड़ा अंतर नहीं है। अनुपात, बहुत बड़ा भेद नहीं है। लेकिन हममें और विराट विश्व में तो अनंत भेद है। इतना विराट है यह विश्व और हम इतने छोटे हैं! हम इससे ही नापने चले हैं। हम अपने छोटे-छोटे विचारों को लेकर कल्पना कर रहे हैं कि जगत के रहस्य को हल कर लेंगे। यहीं भूल हुई जा रही है। हल तो कुछ भी नहीं होता, उलझन बढ़ती जाती है।
हमने जितना हल किया है उतनी उलझन बढ़ गयी है। एक तरफ से हल करते हैं, दूसरी तरफ से उलझन बढ़ जाती है।
पश्चिम में एक नया आंदोलन चलता है, इकॉलॉजी–कि प्रकृति को नष्ट मत करो, अब और नष्ट कत करो। हालांकि हमने कोशिश की थी हल करने की। हमने डी. डी. टी. छिड़का, मच्छर मर जायें। मच्छर ही नहीं मरते, मच्छरों के हटते ही वह जो जीवन की श्रृंखला है उसमें कुछ टूट जाता है। मच्छर किसी श्रृंखला के हिस्से थे। वे कुछ काम कर रहे थे।
हमने जंगल काट डाले। सोचा कि जमीन चाहिए, मकान बनाने हैं। लेकिन जंगल ही काटने से जंगल ही नहीं कटते, वर्षा होनी बंद हो गयी। क्योंकि वे वृक्ष बादलों को भी निमंत्रण देते थे, बुलाते थे। अब बादल नहीं आते, क्योंकि वृक्ष ही न रहे जो पुकारें। उन वृक्षों की मौजूदगी के कारण ही बादल बरसते थे; अब बरसते भी नहीं; अब ऐसे ही गुजर जाते हैं। हमने जंगल काट डाले, कभी हमने सोचा भी नहीं कि जंगल के वृक्षों से बादल का कुछ लेना-देना होगा। यह तो बाद में पता चला जब हम जंगल साफ कर लिये। अब वृक्षारोपण करो। जिन्होंने वृक्ष कटवा दिये वही कहते हैं, अब वृक्षारोपण करो। अब वृक्ष लगाओ, अन्यथा बादल न आयेंगे। हमने तो सोचा था अच्छा ही कर रहे हैं; जंगल कट जायें, बस्ती बस जाये।
हमने आदमी के जीवन की अवधि को बढ़ा लिया, मृत्यु-दर कम हो गयी। अब हम कहते हैं, बर्थ-कंट्रोल करो। पहले हमने मृत्यु-दर कम कर ली, अब हम मुश्किल में पड़े हैं, क्योंकि संख्या बढ़ गयी। अब आदमी बढ़ते जाते हैं, पृथ्वी छोटी पड़ती जाती है। अब ऐसा लगता है अगर यह संख्या बढ़ती रही तो इस सदी के पूरे होते-होते आदमी अपने हाथ से खतम हो जायेगा। ___ तो जिन्होंने दवाएं ईजाद की हैं और जिन्होंने आदमी की उम्र बढ़ा दी है, पच्चीस-तीस साल की औसत उम्र को खींच कर अस्सी साल तक पहुंचा दिया- इन्होंने हित किया? अहित किया?--बहुत
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4