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- इसलिए कृष्ण के चरित्र को हम चरित्र भी नहीं कहते-रासलीला, खेल और खेल भी कृष्ण का . नहीं; जिसका सारा रास चल रहा है, उसी का! उसी बड़ी रासलीला की यह छोटी-सी अनुकृति है।
आखिरी प्रश्नः प्रभु आप मिले और 'किती सांगू मी सांगू तुम्हाला, आज आनंदी आनंद झाला!' कितना बताऊं, आज आनंद ही आनंद घटित हुआ है!
य ह तो बस शुरुआत है। बढ़े चलें तो
जो अभी बूंद की तरह घटा है, कल सागर की तरह हो सकता है। इतने से तृप्त मत हो जाना, राजी मत हो जाना। यह तो केवल भूमिका है। जो मैं तुमसे कह रहा हूं उसे सुन कर तुम्हें जो आनंद होता है, यह तो केवल भूमिका है; असली किताब तो अभी शुरू ही नहीं हुई है। असली किताब तो अनुभव की है। मेरे शून्य को सुनोगे तो समझ में आयेगी। मेरे शब्द को सुनने से इतना ही हो जाये कि तुम्हें भरोसा बैठे कि हां, इस आदमी के साथ थोड़ी देर चलें, कि चलें देखें थोड़ी देर इस आदमी की आंखों से, कि जिन दृश्यों की यह बात कर रहा है शायद सच हों! इतना भी पैदा हो जाये तुम्हारे भीतर तो भी महाआनंद मालूम होगा, क्योंकि एक किरण उतरी, एक बूंद गिरी। लेकिन यह शरुआत है।
और जल्दी से अपने को बंद मत कर लेना, क्योंकि बहुत, मैं जानता हूं, शब्द में ही उलझे रह गये हैं। उन्हें आनंद हुआ था, फिर वे सुनने में ही आनंद ले रहे हैं। मेरे पास आते हैं। वे कहते हैं कि हमें तो आपको सुनने में आनंद आता है; ध्यान इत्यादि में हमारा कोई रस नहीं है।
अब यह बड़े मजे की बात हो गई। यह तो ऐसा हुआ कि तुम डाक्टर के पास गये और तुमने कहाः 'आप जो प्रिस्क्रिप्शन लिखते हैं, आपके हस्ताक्षर बड़े प्यारे हैं! बड़ा मजा आ जाता है। सम्हाल कर फाइल में रखते हैं। दवा इत्यादि लेने में हमें कोई रस है ही नहीं।' तो डाक्टर भी सिर फोड़ लेगा। तो क्यों मेहनत करवा रहे ? प्रिस्क्रिप्शन सम्हाल कर रख लेते हैं, फाइल में जड़वा लेते हैं फोटो। तुम कहते होः दवा इत्यादि में हमें कोई रस नहीं।
मैं तुमसे बोल रहा हूं सिर्फ इसलिए, ताकि तुम ध्यान कर सको। मैं तुमसे बोल रहा हूं सिर्फ इसलिए, ताकि तुम प्रेम कर सको। मैं बोलने के लिए नहीं बोल रहा हूं। यह बात जरूर सच है कि जब डाक्टर किसी बीमार को देखने आता है तो डाक्टर को देखते ही बीमार पचास प्रतिशत ठीक हो
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4