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पकड़ लो और तुम कहो सब मिल गया। तो फिर अड़चन हो गयी। तो जो आगे की सीढ़ी है उसका विरोध हो गया। बुद्धि के कारण विरोध नहीं होता है, बुद्धि को पकड़ लेने के कारण विरोध होता है।
तुम सीढ़ियां चढ़ रहे हो। तुमने नंबर एक की सीढ़ी पर पैर रखा और तुमने कहा कि बस, आ गया घर, अब आगे नहीं जाना। तो तुम्हारी नंबर एक की सीढ़ी नंबर दो की सीढ़ी के विरोध में हो गयी। थी तो नहीं विरोध में; थी तो पक्ष में, थी तो सहयोग में। पहली सीढ़ी बनी ही इसलिए थी कि तुम दूसरी सीढ़ी पर जाओ। लेकिन अब तुमने जो पकड़ बिठा ली, जो आसक्ति बना ली उससे अड़चन हो गयी। सीढ़ी विरोध में नहीं, तुम्हारी आसक्ति विरोध में हो सकती है।
बुद्धि जहां शांत होती, शून्य होती, जहां बुद्धि की रेखा समाप्त होती, वहीं से बुद्धत्व शुरू होता। बुद्धि बड़ी सीमित है, बुद्धत्व विराट है। बुद्धि तो ऐसी है जैसे कोई खिड़की पर खड़ा आकाश को देखे। तो आकाश पर भी खिड़की का चौखटा लग जाता है। आकाश पर कोई चौखटा नहीं है। लेकिन खिड़की के पीछे खड़े हो कर देखते हैं तो आकाश ऐसा लगता है, फ्रेम किया हुआ, चौखटे में जड़ा हुआ। फिर तुम खिड़की से छलांग लगा कर बाहर आ जाओ। खिड़की कहती थोड़े ही है कि रुको। खिड़की तो द्वार खोलती है। खिड़की तो बुलाती कि आओ बाहर; थोड़ा-सा आकाश दिखा दिया, अब भीतर किसलिए खड़े हो? यह थोड़ा-सा आकाश तो स्वाद के लिए था। यह थोड़ा-सा स्वाद दे दिया, अब भीतर किसलिए खड़े हो? तो खिड़की ने तो निमंत्रण दिया कि खिड़की को छोड़ो, बाहर आओ। अब बड़ा आकाश है। इतने में इतना रस पाया तो उतने में कितना न पाओगे। . तुम जब मुझे सुनते हो तो बुद्धि थोड़ा-सा खिड़की खोलती है। उस पर रुक मत जाना। सुन कर इतना रस पाया तो जान कर कितना न पाओगे। शब्द से इतना रस पाया तो निःशब्द से कितना न पाओगे! किसी को मिला, उसके पास बैठ कर मस्त हो गये तो खुद के भीतर जब खुलेगा द्वार तो कैसी मस्ती न आयेगी। मधुशाला पूरी की पूरी मिल जायेगी। मैं तो जैसे प्याली में ढाल-ढाल कर दे रहा हूं!
मुल्ला नसरुद्दीन ने एक मधुशाला खरीद ली—यह सोच कर कि क्या ऐसा बार-बार दूसरे की दूकान पर जा कर पीना! तीन पियक्कड़ों ने विचार किया कि यह तो बात ठीक नहीं, रोज पीते हैं आकर
और नुकसान भी होता, और यह कमाई भी कर रहा है! तो. हम खरीद ही क्यों न लें। तीनों ने अपनी संपत्ति इकट्ठी करके मधुशाला खरीद ली। और जिस दिन उन्होंने मधुशाला खरीदी उन्होंने तख्ती वगैरह निकाल दी दूकान पर से। और दूकान पर एक बड़ा बोर्ड लगा दिया कि दूकान सदा के लिए बंद है। और पियक्कड़ आये, उन्होंने कहा ः यह मामला क्या है? तो मुल्ला ने खिड़की खोली और उसने कहा : क्या समझा, तुम्हारे लिए खरीदी दूकान ? अब हम तीनों मजा करेंगे। हो गया बहुत! अब यह दूकान बंद है। खरीदी ही इसलिए कि अब हम तीनों अंदर मजा करेंगे। अब कोई बेचना-बाचना नहीं है।
जब तम्हारे भीतर मधशाला के तम परे मालिक हो जाओ...। उसकी तम आज कल्पना भी नहीं कर सकते। अभी तो एक किरण भी तुम्हारे भीतर उतर जाती है तो पुलकित कर जाती है। कभी मेरे तार से तुम्हारा तार मिल जाता है-क्षण भर को ही मिलता-तुम डोल जाते। लेकिन जब तुम्हारी वीणा पूरी की पूरी प्रभु से मिल कर बजने लगेगी, तब की सोचो! हजारों गुना, हजार-हजार गुना, कल्पना करो!
साक्षी, ताओ और तथाता
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