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जाए-जहां दुख भी न रहा, सुख भी न रहा–तो न तो समय चलता, न दौड़ता। समय होता ही नहीं-कालातीत, समयातीत! समय-शून्य घड़ी आ जाती है। सब ठहर जाता है।
इस भीतर के समय को ही समझने की बात है। बाहर की घड़ी तो वैसे ही चलती रहेगी-तम ज्ञानी हो जाओ, अज्ञानी हो जाओ; सुख में, दुख में; समाधि में। तुम ध्यान में बैठो, घंटों बीत जायें, आंख खोलो तो तुम्हें लगे कि कोई समय बीता ही नहीं; लेकिन घड़ी तो बतायेगी कि तीन घंटे बीत गये।
रामकृष्ण ध्यान में, गहरी समाधि में चले जाते थे। छह घंटे बीत गये। भक्त तो घबराने लगते, क्योंकि उनका शरीर बिलकुल ऐसा हो जाता जैसे पत्थर हो गया। वे किसी भीतर के लोक में खो गये। भक्त घबराने लगते कि लौटेंगे कि नहीं लौटेंगे, लौट पायेंगे कि नहीं लौटेंगे! एक बार तो छह दिन तक ऐसी ही दशा बनी रही। श्वास भी ऐसी लगे जैसे ठहर गयी। सब शून्य हो गया मालूम पड़ने लगा। भक्तों ने तो आशा छोड़ दी। जब वे लौटे तो भक्तों ने कहा : आपको पता है, छह दिन...? तो उन्होंने कहा : आश्चर्य है, क्योंकि मुझे तो ऐसा लगा अभी-अभी गया था, अभी-अभी लौट आया, क्षण भर भी नहीं बीता। __ यह जो भीतर की प्रतीति है समय की, यह तृष्णा के कारण है। तुम्हारी जितनी तृष्णा होती है, भीतर समय का उतना ही विस्तार होता है। तृष्णा के फैलने के लिए समय की जगह चाहिए, नहीं तो तृष्णा फैलेगी कहां? बाहर जो घड़ी का समय है उसमें तो एक ही पल मिलता है एक बार; दो पल साथ नहीं मिलते। एक पल में क्या तृष्णा करोगे? एक पल में तो सिर्फ जी सकते हो, वासना नहीं कर सकते। वासना की कि पल तो गया। गीत गुनगुना सकते हो, लेकिन तैयारी नहीं कर सकते कि गीत गुनगुनायेंगे। क्योंकि अगर गीत गुनगुनाने की तैयारी की तो यह तो समय गया। इतनी देर रुकता कहां है! वह पल तो आया नहीं कि गया नहीं। इतनी फुर्सत कहां है! वर्तमान में तुम जी सकते हो, लेकिन जीने की योजना नहीं बना सकते। ____ इसलिए समस्त ध्यानियों ने कहा है : वर्तमान में जीओ, अभी और यहीं! इसके पार तुम्हारी कोई वासना न हो तो समय समाप्त हो गया। समय की जरूरत पड़ती है, क्योंकि हमें कल तो चाहिए ही। कल न होगा तो कैसे काम चलेगा? फिर कहां, किस कैनवास पर हम अपनी तृष्णा के चित्र फैलायेंगे? कल सुख होगा। आज दुख है, कल की आशा रखते हैं। कल सपना पूरा होगा। कल भी आज की तरह आयेगा; तब तुम फिर और आगे कल पर सपने को फैला दोगे। ऐसे तुम्हारा सपना फैलता जाता है-शून्य आकाश में!
भविष्य है थोड़े ही। जो है, वह तो वर्तमान है। जो गया, वह गया। जो आया नहीं, आया नहीं। अभी जो है, भविष्य और अतीत के बीच में जो छोटा-सा सेतु है, एक पल का वही है। उस पल में डूब जाओ। जी सकते हो, लेकिन जीने की योजना नहीं बना सकते। सत्य को पा सकते हो, लेकिन सपना नहीं फैला सकते। सत्य तो यहीं खड़ा है द्वार पर, लेकिन तुम्हारी आंखें अगर सपनीली हैं और तुम सपने देख रहे हो, तो तुम्हें समय चाहिए। सपने को देखने के लिए समय चाहिए। सत्य को देखने के लिए समय की कोई भी जरूरत नहीं है। तो जितना बड़ा सपना होगा उतना ही ज्यादा समय चाहिए, उतना ही लंबा समय चाहिए।
तो जितनी वासना होती है उतना ही आदमी मौत से घबराता है। मौत से घबराने का क्या अर्थ
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4