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समझ लेना कि इस आदमी को अभी दिखाई नहीं पड़ा, इसकी आंखें नहीं खुलीं, यह अंधा है। ये अंधे के ढंग हैं। यह अंधे की तरह अभी भी टटोल रहा है। इसके पास आंख नहीं है। अन्यथा तुम्हारे भीतर बैठा परमात्मा भी इसको दिखाई पड़ जाता-उतना ही जितना अपने भीतर का दिखाई पड़ जाता है।
ऐसा समझो कि जितना तुम अपने भीतर जाते हो उतना ही तुम दूसरे के भीतर भी चले गये, क्योंकि तुम और दूसरे का भीतर अलग-अलग नहीं है। मेरा अंतस्तल और तुम्हारा अंतस्तल अलग-अलग नहीं है। अंतरतम में हम एक हैं; बाहर-बाहर भिन्न हैं। तो जिसको सिर्फ बाहर की सूझ है उसको भेद दिखाई पड़ता है। जिसको भीतर की सूझ होती है उसे कोई भेद नहीं दिखाई पड़ता है। तो न तो वह अपनी समाधि को देखता है।
न समाधिं न विक्षेपं। और तुम उसके लिए विक्षेप भी पैदा नहीं कर सकते।
कहावत है कि घर में एक आदमी धार्मिक हो जाये तो पूरा घर परेशान हो जाता है। तुमने देखा, एकाध धार्मिक आदमी तुम्हारे घर में पैदा हो जाये, घर भर की मुसीबत आ गई! वे नहा कर चले आ रहे हैं : कोई छू न दे! किसी ने छू दिया कि उपद्रव हो गया, विक्षेप हो गया।
__ मेरी नानी थी-सीधी-साधी ग्रामीण, पुरानी परंपरागत, जैन ढांचे में पली थी। कोई इतना भी नाम ले दे. मांसाहार का नाम ले दे भोजन करते वक्त कि विक्षेप हो गया। अब 'मांसाहार' शब्द में तो मांसाहार नहीं है। मांसाहार की तो दूर छोड़ो, कोई कह दे टमाटर, तो वह नाराज हो जाती। जब तक वह जीवित रही, घर में टमाटर नहीं आ सकता था, क्योंकि टमाटर से थोड़ा-थोड़ा मांस का खयाल आता है। जैसे ही मुझे समझ आ गया, मैं बचपन में काफी दिन तक उनके साथ रहा, तो मैं कुछ भी नहीं कहता था; मैं एकदम से अपने मुंह पर ऐसा उंगली रख लेता। तो वह कहती, क्या कर रहे हो? मैं कहता. गलत चीज आ रही है। बस विक्षेप हो गया। वह कहती, विक्षेप हो गया। अब मैंने कछ कहा ही नहीं है अभी, टमाटर भी नहीं कहा है, मगर उंगली रख लेना काफी था। अभी जो कहा ही नहीं है, उसके कारण विक्षेप हो गया।
विक्षेप का क्या अर्थ होता है? विक्षेप का अर्थ होता है : हम विक्षुब्ध होने को तत्पर हैं, तैयार हैं; हम मौका ही देख रहे हैं; कोई भी कारण मिल जाये, हम विक्षुब्ध हो जायेंगे। फिर कारण मिल जायेगा। फिर कारण ज्यादा दूर नहीं है। जब तुम्हीं तैयार बैठे हो तो कोई न कोई कारण मिल जायेगा। कुछ न कुछ हो जायेगा। न होगा तो तुम खोज लोगे। __ अष्टावक्र कहते हैं : न समाधिं न विक्षेपं। .. जो व्यक्ति सच में ही शांत हुआ, विश्राम को उपलब्ध हुआ, तुम उसे विक्षुब्ध नहीं कर सकते। उसके लिए कोई विक्षेप नहीं रहा। वह ध्यान कर रहा हो, शांत बैठा हो, तुम बैंड-बाजे बजाओ तो भी कोई विक्षेप नहीं होगा। तुम शोरगुल मचाओ तो भी कोई विक्षेप नहीं होगा। उसकी शांति में कोई बाधा नहीं पड़ेगी। शांति है तो बाधा पड़ती ही नहीं है। शांति नहीं है तो ही बाधा पड़ती है। जिसको तुम जबर्दस्ती आरोपित कर लेते हो, उसमें बाधा पड़ती है। जो भीतर से विकसित होता है, आता है अंतरतम से, जिसका आविर्भाव होता है, उसमें कोई बाधा नहीं पड़ती।
शंकराचार्य गंगा से स्नान करके लौट रहे हैं सुबह, ब्रह्म-मुहूर्त, और एक शूद्र ने उनको धक्का
साक्षी स्वाद हे संन्यास का
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