Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 410
________________ नहीं है। परमात्मा सीधे-सीधे उपलब्ध है। परमात्मा बहुत सरलता से उपलब्ध है। तुम जरा सरल हो जाओ। जटिलता तुम्हारी है। परमात्मा की नहीं है। परमात्मा बहुत पास है, पास से भी पास है। मुहम्मद कहते हैं कि वह जो गले की नस है, जिसे काटने से आदमी मर जाता है, वह भी दूर है; परमात्मा उस पास से भी ज्यादा पास है। हृदय की धड़कन से भी ज्यादा पास है। सच तो यह है, यह कहना कि परमात्मा पास है, ठीक नहीं; क्योंकि परमात्मा और तुम में जरा भी फासला नहीं है। पास में भी तो फासला हो जाता है। तुम मेरे पास बैठे तो भी हो तो अलग ही; कि दूर बैठे कि पास बैठे-क्या फर्क पड़ता है! थोड़ी दूरी कम है, लेकिन दूरी तो है ही। लेकिन परमात्मा तुम्ही हो। इस बात की उदघोषणा है संन्यास कि परमात्मा तुम हो। तुम जैसे हो, यही प्रभु-पूजा, यही प्रभु-सेवा, यही परिक्रमा। तुम्हारा सामान्य व्यवहार प्रार्थना है, ध्यान है। बस इतना ही करो कि तुम प्रत्येक कृत्य को होश से, साक्षी-भाव से करने लगो। दूसरा प्रश्न ः जब कभी कोई आपसे पूछता है कि ध्यान में ऐसा-ऐसा अनुभव हो रहा है और आप कह देते हैं ऐसा होना शुभ है, तब तो अहंकार और बड़ा होने लगता है। और सब समय तो अहंकार ही सिर उठाता रहता है। यह | हंकार के संबंध में एक बात समझो। प्रश्न लिखते समय भी अहंकार ने बहुत - अहंकार छोटा हो तो उससे मुक्त सोच-विचार किया, फिर भी।...? होना असंभव है। बात तुम्हें बड़ी उल्टी लगेगी, पर मैंने उल्टी बातें कहने का तय ही कर रखा है। अहंकार छोटा हो तो छोड़ना बहुत मुश्किल। अहंकार जितना बड़ा हो उतना ही जल्दी छूट सकता है। जैसे पका फल गिर जाता है, ऐसे ही पका अहंकार गिरता है; कच्चा फल नहीं गिरता। जैसे कोई बच्चा गुब्बारे में हवा भरता जाये, भरता जाये, फुग्गा बड़ा होता जाता, होता जाता, फिर फड़ाक से फूट जाता। ऐसा कभी-कभी मैं तुम्हारे अहंकार में हवा भरता हूं। तुम कहते हो, ध्यान; मैं कहता हूं, अरे कहां ध्यान, तुम तो समाधिस्थ हो गये! तुम कहते हो, कमर में दर्द होता है; मैं कहता, दर्द नहीं, यह तो कुंडलिनी-जागरण है! तुम कहते हो, सिर में बड़ी पीड़ा बनी रहती है; मैंने कहा, कहां की बातों में पड़े हो, यह तो तीसरा नेत्र, शिव-नेत्र खुल रहा है। सावधान रहना! यह फुग्गे में हवा भरी जा रही है। फिर फूटेगा। जब फूटेगा तब तुम समझोगे। 394 अष्टावक्र: महागीता भाग-4

Loading...

Page Navigation
1 ... 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444