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चाल थी। क्योंकि गीता पर इतने लोगों का भाव है, इसलिए उसे छोड़ नहीं सकते थे। कहते थे 'गीता-माता'! लेकिन जब मरे तो मुंह से जो नाम निकला, वह था ः हे राम! उस वक्त कृष्ण नहीं निकला। कृष्ण की कोई जगह नहीं थी हृदय में।
अब तुम थोड़ा सोचो, जीवन भर कहाः अल्ला ईश्वर तेरे नाम। मरते वक्त अल्लाह भी नहीं निकला-निकला : हे राम! जिन्ना ने फौरन सोचा होगा : ‘देख लो! यही तो मैं कह रहा था जिंदगी भर से कि 'अल्लाह ईश्वर तेरे नाम', यह सब राजनीति है, क्योंकि मरते वक्त अल्लाह क्यों न निकला? 'हे राम' क्यों निकला?' .
मरते वक्त आदमी में राजनीति नहीं रह जाती। मरते क्षण में तो वही निकल आता है जो भीतर था। राजनीति तो जिंदा होने का खेल है, हिसाब-किताब है-अब गोली लग गई, अब कहां फुरसत सोचने की कि क्या निकले! सोचने का मौका मिलता अगर गांधी खाट पर मरते, बीमारी से मरते, साधारणतः मरते-तो 'अल्ला ईश्वर तेरे नाम' कहते हुए मरते। लेकिन गोली ने सब मामला गड़बड़ कर दिया। हिंदू की गोली थी और वहां भी हिंदू को प्रगट कर गई: हे राम! अनजाने क्षण में निकल गया। उस वक्त कृष्ण भी नहीं निकला। क्यों राम? .. गांधी की पकड़ भी मर्यादा की थी-ऐसी छोटी-छोटी चीज में मर्यादा! ऐसी छोटी-छोटी चीज में मर्यादा कि तुम कभी हंसोगे भी। उनके सेक्रेटरीज़ को यह भी खयाल रखना पड़ता था छोटी-छोटी चीजों का। जिस सेविका ने उनके कपड़े धोये, चादर धोई, वह रस्सी पर डाल आती तो वह पीछे जा कर बता आते कि इसको कैसा डालो। चादर रस्सी पर कैसी डालनी, इरछी-तिरछी न हो–उसकी भी मर्यादा है! उसको सीधा करके डालो। किचिन में पहुंच जाते और समझाते कि सब्जी भी कैसे काटो–उसकी भी मर्यादा है।...टमाटर को ऐसा सीधा नहीं काट देना चाहिए, क्योंकि हो सकता है जहां से टमाटर वृक्ष से जुड़ा होता है वहां कोई छोटा-मोटा कीड़ा-मकोड़ा छिपा हो, हत्या हो जायेगी! तो पहले उस हिस्से को अलग काट कर करो।..ऐसी छोटी-मोटी मर्यादा। हर चीज का हिसाब। चिद्री आये तो लिफाफे को फेंक मत दो खोल कर उलटा जोड कर फिर लिफाफा बना लो।
ये बातें लोगों को खब जंचीं। जंचने वाली हैं, क्योंकि यही तम्हारी बद्धि है। लगा कि यह आदमी तो बड़ा गजब का है! कैसा चरित्र! . कृष्ण बेबूझ हैं। गांधी में सीधा तर्क है-वे राम की ही श्रृंखला में हैं। वे उसी परंपरा में आते हैं।
कृष्ण बेबूझ हैं। कृष्ण की लीला परमात्मा की लीला का छोटा-सा प्रतिबिंब है। अगर तुम कृष्ण को समझ पाये तो तुम सारे अस्तित्व की कथा को समझ लोगे। अगर राम को समझ पाये तो तुम इतना ही समझ पाओगे कि अच्छे आदमी का जीवन कैसा होता है। रावण को समझो तो बुरे आदमी का जीवन कैसा होता है, यह समझ में आ जायेगा। राम को समझो तो अच्छे आदमी का जीवन कैसा होता है, यह समझ में आ जायेगा। कृष्ण को अगर समझो तो तुम समझोगे पारमात्मिक जीवन कैसा होता है, भागवत जीवन कैसा होता है! अच्छा-बुरा दोनों वहां मिलते हैं। अच्छा-बुरा दोनों ही किनारे की तरह हैं; परमात्मा की नदी दोनों के बीच बहती है, दोनों को छूती बहती है। कृष्ण के जीवन में अच्छा भी है, बुरा भी है। कृष्ण का जीवन समग्र है, खंडित नहीं, चुना हुआ नहीं, पूरा का पूरा है, कच्चा है! इसमें चुनाव नहीं है, अनगढ़ है।
प्रम, करुणा, साक्षी और उत्सव-लीला
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