Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 338
________________ से बड़ा विक्षेप पड़ता है, कि हमें भौंकने में बाधा आती है। बंद करो ध्यान इत्यादि, क्योंकि इससे हमें भौंकने में थोड़ा अपराध भाव मालूम पड़ता है कि भौंकते हैं तो विक्षेप पड़ेगा। तुम हमारी स्वतंत्रता पर बाधा डाल रहे हो यहां बैठ कर, आंख बंद करके, आसन लगा कर । नहीं, कुत्ते को तुम्हारे ध्यान से कुछ मतलब नहीं है। तुम्हारे ध्यान को कुत्ते से क्या मतलब है? कुत्ता भौंका, भौंका | आवाज गूंजी, गूंजी। कोई प्रतिक्रिया पैदा नहीं हुई। तुम्हारे भीतर ऐसा नहीं हुआ कि नहीं, इस कुत्ते को नहीं भौंकना चाहिए था । कि यह पड़ोसी का कुत्ता और यह पड़ोसी, ये मेरे दुश्मन हैं, ये मेरी जान के पीछे पड़े हैं। कि देखो, मैं ध्यान करने बैठा हूं और यह पड़ोसी अपने कुत्ते को वा रहा है! साजिश है। षड्यंत्र है। चल पड़ा मन कि इसका बदला चुका कर रहूंगा। कि खरीद कर लाऊंगा इससे भी मजबूत कुत्ता, अलसेशियन, और इसको बदला चुकवा कर रहूंगा । कि यह कारपोरेशन क्या कर रहा है, आवारा कुत्ते घूम रहे हैं, इनको गोली क्यों नहीं दे देता ? चल पड़ा मन । प्रतिक्रिया शुरू हो गयी। तो विक्षेप... । विक्षेप कुत्ते के भौंकने से नहीं होता, विक्षेप तुमने जो कुत्ते के भौंकने के साथ प्रतिक्रिया की, जो विचार करने लगे...। अब विचार तुम्हारा है। तुम विचार न करो। कुत्ता भौंका, भौंका । तुम शांत भाव से बैठे रहो। टेलीफोन की घंटी बजने लगी, तुम बेचैन हो जाते हो। कलकत्ते में एक सटोरिया के घर ठहरता था। वे बड़े सटोरिया थे। कमरा ही नहीं था कोई जहां उन्होंने टेलीफोन न लगा रखे हों। बाथरूम में भी दो-दो तीन-तीन टेलीफोन रखे हुए थे। बाथरूम की वाल पर भी सब वह गूद डाला था उन्होंने । लिख देते थे वहीं | क्योंकि बाथरूम में नहा रहे हैं और कोई सौदा कर लिया, वहीं फोन उठा कर टब में बैठे-बैठे, कि टायलेट पर बैठे-बैठे, पता नहीं... तो वहीं लिख देते। जब मैं उनके बाथरूम में स्नान किया तब मैंने देखा कि सब दीवालों पर पेंसिल से लिखा हुआ है । एक पेंसिल भी रखी है। मैंने उनसे पूछा कि मामला क्या है। उन्होंने कहा, अब सट्टे का मामला ही ऐसा है कि इसमें क्षण भर की देर नहीं होनी चाहिए। तो मैंने कहा बाथरूम तो समझ आ गया, तुम्हारा पूजा घर देखना चाहता हूं। वह भी उन्होंने बना कर रखा है। वहां भी फोन लगा है। मैंने कहा, यह मामला क्या है? तुम यहां तो...। उन्होंने कहा, यह सट्टे का मामला ही ऐसा है। भगवान रुक सकता है थोड़ी देर । यह सट्टे का मामला ही ऐसा है कि जरा सी देर हो गयी तो सब गड़बड़ हो जाये, लाखों यहां के वहां हो जायें। तो यहां तो उसी वक्त निपटाना पड़ता है। माला चलती रहती है। निपटा देता हूं जल्दी से । एक सेकेंड में निपटा दिया, फिर अपनी माला फेरने लगे । पर मैंने कहा, यह तो विक्षेप हुआ। घंटी बजी टेलीफोन की तो तुम सोचने लगे, कौन फोन कर रहा होगा! कहीं कोई सौदा तो नहीं है! विचार उठ गया। ख्याल करना, टेलीफोन की घंटी बाधा नहीं डाल रही है, तुम्हारे भीतर जो विचार पैदा हो गया उससे बाधा पड़ रही है। अब मैं भी उनके बाथरूम में नहाता था। तो मैंने कहा, घंटी बजती रहती है हमें क्या लेना-देना ! अपना कोई सौदा ही नहीं है। तो घंटी कोई बाधा नहीं डालती। घंटी बजती रहती है, हम उसका मधुर संगीत सुनते, कि अपने को कोई लेना-देना नहीं है। मैं एक रेस्ट हाउस में मेहमान था । और एक मंत्री भी वहां रुके थे। और रात मंत्री सो न सके, 322 अष्टावक्र: महागीता भाग-4

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