Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 397
________________ प्रवृत्तौ वा निवृत्तौ वा नैव धीरस्य दुर्ग्रहः। यदा यत् कर्तुमायाति तत्कृत्वा तिष्ठतः सुखम्।। - जब कभी जो कुछ कर्म करने को आ पड़ता है-बुलाता भी नहीं कि ऐसा आये-जो आ पड़ता है, उसको करके धीरपुरुष सुखपूर्वक रहता है। सफल हो असफल, इसकी भी फिक्र नहीं है। कर देता है, अपने से जो बनता है कर देता है। जो स्थिति आ जाती है, जैसी चुनौती आ जाती है वैसा कर देता है। और प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति में कोई दुराग्रह नहीं रखता है। न तो वह यह कहता है कि मैं संन्यासी हूं, यह मैं कैसे करूं! तेरापंथ जैनों का एक संप्रदाय है। अगर कोई रास्ते के किनारे मर रहा हो और तेरापंथी साधु निकल रहा हो और वह आदमी चिल्लाता हो कि मुझे प्यास लगी, मुझे पानी पिला दो, तो भी तेरापंथी साधु पानी नहीं पिलायेगा। क्योंकि वह संन्यासी है, वह कैसे पानी पिला सकता है! और उन्होंने बड़े तर्क-जाल खोज लिए हैं। वे कहते हैं, यह आदमी तड़फ रहा है किसी पिछले जन्म के पाप के कारण। इसने कुछ पाप किया होगा, किसी को तड़फाया होगा, इसलिए तड़फ रहा है। अब इसके कर्म में हम बाधा क्यों डालें? हम अगर पानी पिला दें तो हम बाधा हो गये। हमने इसको इसका कर्मफल न भोगने दिया, फिर बेचारा भविष्य में भोगेगा। भोगना तो पड़ेगा ही, तो हमने और इसका जाल बढ़ा दिया। इसी जन्म में छूट जाता, अब अगले जन्म में भोगेगा। तो बेहतर है हम कुछ बाधा न दें, हम अपने रास्ते चले जायें। . यह तो बड़ी कठोर बात हो गई। यह तो बड़ी हिंसक बात हो गई। और बड़े तर्क आदमी खोज सकता है। तेरापंथियों ने बड़े तर्क खोजे हैं। वे कहते हैं, कोई आदमी कुएं में गिर पड़ा है तो उसे । निकालना मत, क्योंकि अगर मान लो उसे तुमने निकाला और वह जाकर गांव में किसी की हत्या कर दें, तो तुम भी जुम्मेवार हुए हत्या में। क्योंकि न तुम निकालते न वह हत्या करता। तो असली जुम्मेवार तो तुम्ही हो गये। तुम भी साझीदार हो गये। पाओगे फल इसका। सड़ोगे नरकों में। ___ इंसलिए कोई आदमी गिर गया है, कुएं में गिर गया है, चिल्ला रहा है, तुम चुपचाप गुजर जाना। तुम दखल मत देना। लेकिन यह साक्षी-पुरुष की बात न हुई। साक्षी-पुरुष की तो बात यही है : 'जब कभी जो कुछ कर्म करने को आ पड़ता है। कोई कुएं में गिर पड़ा है तो वह बचा लेगा। ऐसा भी नहीं सोचता कि मेरे बचाने से यह बचता है। न ऐसा ही सोचता है कि यह कल हत्या कर देगा किसी की, तो मैं जुम्मेवार होता हूं। कर्ता तो वह अपने को मानता ही नहीं। उसने तो सारा कर्तृत्व परमात्मा पर छोड़ दिया है। अगर उसकी मर्जी होगी तो बच रहा है। उसकी मर्जी है, इसीलिए मैं कुएं के किनारे आ गया हूं। सामने स्थिति आ गई है, जो बन पड़े कर देता है-जो हो परिणाम हो। - यदा यत्कर्तुमायाति तत्कृत्वा तिष्ठतः सुखम्। और ऐसा जो हो जाये जब, वैसा करके सुख में प्रतिष्ठित रहता है। उसके सुख को कोई छीन . नहीं सकता। उसके कोई आग्रह नहीं हैं। वह ऐसा नहीं कहता है कि मैं संन्यासी हूं, इसलिए इतना ही व्यवहार करूंगा; कि मैं गृहस्थ हूं, इसलिए ऐसा व्यवहार करूंगा; कि मैं ब्राह्मण हूं तो मैं ऐसा व्यवहार करूंगा। नहीं, उसके कोई आग्रह नहीं हैं। मुक्त भाव से जो परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है, जो उस साक्षी स्वाद है संन्यास का 381

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