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मिलता तो भी जीना चाहते हैं। ऐसी पकड़ क्यों होगी जीवन पर ? ऐसी पकड़ का कारण है।
जीवन में हमने कुछ पाया नहीं; आशा कल पर लगी है। कल होगा तो शायद मिल जाये; आज तक तो मिला नहीं। आज तक तो हम खाली के खाली रहे हैं। आज तक तो हमारा जीवन राख ही राख है । कोई फूल खिला नहीं; एक आशा से जी रहे हैं कि शायद कल खिल जाये। इसलिए मरें कैसे ?
अब मैं तुमसे एक विरोधाभास कहना चाहता हूं : जो आदमी ठीक से जी लेता है, उसकी जीवेषणा मिट जाती है। जो आदमी नहीं जी पाता, वही जीना चाहता है। जो आदमी जितना कम जीया है, उतना ही ज्यादा जीना चाहता है। और जो आदमी ठीक-ठीक जी लिया है और जीवन को भर - आंख देख लिया है, वह आदमी जीवन की वासना से मुक्त हो जाता है। उसकी मौत अभी आये तो वह स्वागत करेगा। वह उठ कर तैयार हो जाएगा। वह कहेगा, मैं तैयार ही था। वह क्षण भर की देरी न लगाएगा। वह तैयारी के लिए समय भी न मांगेगा। वह यह भी न कहेगा कि कुछ अधूरे काम पड़े हैं, वे निबटा लूं घड़ी भर में आया । कुछ भी अधूरा नहीं है । जीवन जिसने सीधा-सीधा देख लिया, आंख मिला कर देख लिया...! मगर आशा के कारण ओख हमारी कहीं और है ।
कल रात मैं एक किताब पढ़ रहा था। जिसने लिखी है उससे अधिक लोग राजी होंगे। किताब बहुत बिकी है। किताब का नाम है : 'होप फॉर दि टर्मिनल मैन' (आशा, अंतिम आदमी के लिए) । पुस्तक के कवर पर ही उसने लिखा है : 'बिना भोजन के आदमी चालीस दिन जी सकता है; बिना पानी के तीन दिन; बिना श्वास के आठ मिनट; बिना आशा के एक सेकेंड भी नहीं ।'
अधिक लोग राजी होंगे। बिना आशा के कैसे जीयोगे एक सेकेंड ? आशा जिला रही है। अभी तक नहीं हुआ, कल हो जाएगा! कल तक और जी लो ! कल तक और गुजार लो ! थोड़ी घड़ियां दुख की हैं, इन्हें बिता दो ! रात है, सुबह तो होगी ! कभी तो होगी !... इससे मौत से डर है।
मौत क्या करती है ? मौत तलवार की तरह आती है और कल को मिटा डालती है। मौत के बाद . फिर कोई कल नहीं है। मौत तुम्हें आज पर छोड़ देती है। एक झटके में रस्सी काट देती है कल की। भविष्य विसर्जित हो जाता है। मौत तुम्हें थोड़े ही मारती है; मौत भविष्य को मार देती है। मौत तुम्हें थोड़े ही मारती है; मौत आशा 'जहर बन जाती है। अब तो कोई आशा न रही।
इसलिए आदमी ने पुनर्जन्म के सिद्धांत में बड़ी श्रद्धा रखी। फिर हमने नयी आशा खोज ली : कोई हर्जा नहीं, इस जीवन में नहीं हुआ, अगले जीवन में होगा। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि पुनर्जन्म का सिद्धांत सही है या गलत - यह मैं कुछ नहीं कह रहा हूं। मैं इतना ही कह रहा हूं कि अधिक लोग जो पुनर्जन्म के सिद्धांत में मानते हैं, वे जानने के कारण नहीं मानते। उनकी मान्यता तो बस आशा का ही विस्तार है। मौत को भी झुठला रहा उनका सिद्धांत। वे कहते हैं: कोई फिक्र नहीं; मौत आती है, कोई फिक्र नहीं; आत्मा तो रहेगी! जो अभी नहीं कर पाये हैं, अगले जन्म में कर लेंगे।
जीवन की आकांक्षा का अर्थ है : जीवन से हम अपरिचित रह गये हैं। जीवन की आकांक्षा का अर्थ है : जीवन मिला तो, लेकिन पहचान न हो पायी।
तुम्हें पता ही नहीं, तुम कौन हो ! तुमने कभी गहन में यह पूछा ही नहीं कि मैं कौन हूं! तुमने कभी यह जानने की चेष्टा ही न की, यह जीवन जो घटा है, यह क्या है? इसका अर्थ, इसका रहस्य, इसका प्रयोजन, इसके पीछे क्या छिपा है ? यह रोज उठ आना, भोजन कर लेना, दफ्तर भागे जाना, दफ्तर
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4