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मैंने तुम्हें संन्यास दिया है—इसलिए नहीं कि तुम संन्यासी रहोगे तो कभी मुक्त हो जाओगे। मैंने तुम्हें संन्यास देने में ही तुम्हें मुक्त कर दिया है। यह एक मुक्त चित्त की दशा है। इसे लोग नहीं समझेंगे। कोई चिंता भी नहीं है। लोग समझें, इसकी जरूरत भी क्या है? लोगों के समझने पर निर्भर भी क्यों
रहना?
___ तुम्हारी अड़चन मैं समझता हूं। जब लोग तुमसे पूछते हैं, 'आप कौन? आपका स्वरूप क्या? कहां से आ रहे? कहां जा रहे?' तो वे बड़ी ज्ञान की, ब्रह्मज्ञान की बातें पूछ रहे हैं। तुम्हारा भी दिल होता है, ब्रह्मज्ञान का ही उत्तर दें। क्योंकि ज्ञानी बनने का मजा किसको नहीं होता! और तुम्हें अड़चन भी आती है, क्योंकि ब्रह्मज्ञान अभी हुआ नहीं है। ___ तो तुम मुझसे पूछ रहे हो : 'दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें?' __ यह सवाल दुनिया का नहीं है जो तुम्हें कांटे की तरह चुभ रहा है। कांटे की तरह यह बात चुभ रही है कि जवाब दोगे तो झूठ होगा। और न जवाब दो तो अज्ञानी सिद्ध होते हो। ___ मैं तुमसे कहता हूं : स्वीकार कर लेना कि मैं अज्ञानी हूं। मैं अपने संन्यासियों को इतना हिम्मतवर चाहता हूं कि वे स्वीकार कर सकें कि मैं अज्ञानी हूं। मैं अपने संन्यासी को इतना हिम्मतवर चाहता हूं कि वह स्वीकार कर सके कि मैं पापी हूं। मैं अपने संन्यासी को इतना हिम्मतवर चाहता हूं कि वह स्वीकार कर सके कि जो साधारण मनुष्य की सीमाएं हैं वे ही मेरी सीमाएं भी हैं; मैं विशिष्ट नहीं।
और यही तम्हारी विशिष्टता बनेगी। यही तम्हारा नवीन रूप होगा। तम अज्ञानी हो तो कह दो कि अज्ञानी हूं; मुझे पता नहीं, मैं बिलकुल अज्ञानी हूं। अज्ञान में दंश कहां है? सच तो यह है कि अज्ञान तम्हारे तथाकथित ज्ञान से ज्यादा निर्मल. ज्यादा निर्दोष है। तम्हारा तथाकथित ज्ञान तो उधार
और बासा है; दूसरे से लिया है। अज्ञान तुम्हारा है। कम से कम तुम्हारा तो है! कम से कम अपना, निजी तो है! अंधेरा सही, पर अपना तो है। यह रोशनी तो किसी और के हाथ के दीये की है। यह तो दूसरे के हाथ में रोशनी है। इसका बहुत भरोसा मत करना। यह कब फूंक देगा या कब रास्ते पर अलग चल पड़ेंगा... । अंधेरा तुम्हारा है। जो अपना है उससे अन्यथा का दावा मत करना।
' और फिर एक और तुमसे गहन बात कहना चाहता हूं। कुछ बातें हैं जिनका ज्ञान कभी नहीं होता। इसीलिए तो जीवन रहस्यमय है। जैसे परम सत्य कभी भी ज्ञान नहीं बनता–अनुभव तो बनता है, ज्ञान नहीं बनता। तुम जान तो लेते हो, लेकिन जना नहीं सकते। तुम्हें तो पता चल जाता है, लेकिन तुम दूसरे को पता नहीं बता सकते। वह जो परम अवस्था है सत्य की-ऋत्, तथाता, ताओ, साक्षी-उसका तुम्हें अनुभव तो हो सकता है, लेकिन तुम दूसरे को न कह सकोगे, क्या है। वह गूंगे का गुड़ है। गूंगे केरी सरकरा! स्वाद तो आ जायेगा, ओंठ बंद हो जायेंगे। ___ तो घबराना मत। शांत, मौन खड़े रह जाना। अगर कुछ भी कहने को न आता हो तो यही तुम्हारा कहना है कि शांत और मौन खड़े रह जाना।
बुद्ध बहुत बार चुप रह जाते थे। लोग प्रश्न पूछते। वैसा तो कभी न घटा था। भारत तो ज्ञानियों का देश है। यहां तो पंडितों की भरमार है। यहां तो पान की दूकान पर बैठा हुआ आदमी भी ब्रह्मज्ञान से नीचे नहीं उतरता। यहां तो सभी ब्रह्मज्ञान पर सवार हैं। यहां तो कोई नीचे है ही नहीं। ब्रह्मज्ञान तो यहां ऐसी साधारण बात है कि जिसका कोई हिसाब नहीं है। बुद्ध बड़े हिम्मतवर आदमी थे। पंडितों
साक्षी, ताओ और तथाता
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