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- लेकिन हमारी अड़चनें हैं। पैंतीस साल के पहले आदमी जितना भोजन करता है, पैंतीस साल के बाद भी करता चला जाता है। वह यह याद ही नहीं करता कभी कि अब ढलान शुरू हो गयी। तो फिर भोजन सारा पेट में इकट्ठा होने लगता है। अब वह कहता है : 'मामला क्या है ? इतना ही भोजन हम पहले करते थे, तब कुछ गड़बड़ न होती थी।' चालीस के आसपास ही पेट बड़ा होना शुरू होता है। कारण कुल इतना है कि पैंतीस तक तो तुम चढ़ाव पर थे। अब उतार पर हो। सत्तर साल में मरना है, तो उतरोगे भी न? पैंतीस साल लगेंगे उतरने में। चढ़ तो गये पहाड, अब उतरेगा कौन? अब तम उतरने लगे। अब इतने पेट्रोल की जरूरत नहीं। सच तो यह है कि पेट्रोल की जरूरत ही नहीं है। अब तुम पेट्रोल की टंकी बंद कर दे सकते हो, कार उतरेगी। अब कम भोजन की जरूरत है। अल्प भोजन की जरूरत है। अल्प निद्रा की जरूरत है। लेकिन पुरानी आदत को हम खींचते चले जाते हैं।
हम सुनते ही नहीं प्रकृति की। और प्रकृति परमात्मा की आवाज है। तो हम मरते दम तक भी जीवन से जकड़े रहते हैं। अगर हम चुपचाप प्रकृति को सुनते चलें तो प्रकृति हमें सब चीजों के लिए राजी कर लेती है। जब नींद कम हो जायेगी तो हम जानेंगे कि अब जरूरत कम हो गयी।
ज्ञानी का अर्थ है, जो अपनी तरफ से कुछ भी नहीं करता। आ गयी नींद तो ठीक, नहीं आयी तो पड़ा रहता है। आंख खुल गयी तो ठीक, नहीं खुली तो भी पड़ा रहता है। न तो ज्ञानी कर्मठ होता, और न आलसी होता। ज्ञानी कुछ होता ही नहीं। ज्ञानी उपकरण, निमित्तमात्र होता है। परमात्मा जो करवा लेता है, कर देता है। नहीं करवाता तो प्रतीक्षा करता है; जब करवायेगा तब कर देंगे।
न जागर्ति न निद्राति...। वह न तो अपने से सोता, न अपने से जागता। यहां तक किनोन्मीलति न मीलति।
पलक भी नहीं झपकता अपने से। झपकी तुमने भी कभी नहीं है, खयाल ही तुमको है कि तुम झपक रहे हो। अभी कोई एक जोर से हाथ तुम्हारे पास ले आयेगा, पलक झपक जायेगी। अगर तुम सोच-विचार करोगे, तब तो दिक्कत हो जायेगी। तब तक तो आंख मुश्किल में पड़ जायेगी। पलक तो अपने से झपकती है। प्राकृतिक है। वैज्ञानिक कहते हैं : 'रिफ्लेक्स ऐक्शन।' अपने से हो रहा है, तुम कर नहीं रहे हो। ____ तुमने नींद में देखा, कीड़ा चढ़ रहा हो, तुम झटक देते हो। तुम्हें पता ही नहीं है। सुबह तुमसे कोई पूछे कि कीड़ा चढ़ रहा था चेहरे पर, तुमने झटका? तुम कहोगे, हमें याद नहीं। किसने झटका? तुम्हें याद ही नहीं है! लेकिन कोई तुम्हारे भीतर जागा हुआ था, झटक दिया। रात गहरी से गहरी नींद में भी तुम्हारा कोई नाम पुकार देता है कि राम! तुम करवट ले कर बैठ जाते हो कि कौन उपद्रव करने आ गया? सारा घर सोया है। किसी को सुनाई नहीं पड़ा, तुम्हें सुनाई पड़ गया। तुम्हारा नाम है, तो तुम्हारे अचेतन से कोई ऊर्जा उठ गयी। नींद में भी तुम सुन लेते हो। मां सोती है, तूफान उठे, बादल गरजें, बिजली चमके, उसे सुनाई नहीं पड़ता। लेकिन उसका बच्चा जरा कुनमुना दे, वह तत्क्षण उठ जाती है। तुम्हारे भीतर कोई सूत्रधार है। __अष्टावक्र कहते हैं: अहो परदशा क्वापि वर्तते मुक्त चेतसः। ___ धन्य है! अहो! कैसी है मुक्तचेतस की उत्कृष्ट परमदशा कि न तो पलक झपकता, न पलक
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4