Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 411
________________ अहंकार के संबंध में एक बात बहुत आवश्यक है समझ लेनी। इधर मेरे पास पश्चिम से बहुत लोग आते हैं, पूरब के बहुत लोग आते हैं। एक बात देख कर मैं हैरान हुआ हूं: पूर्वीय व्यक्ति को समर्पण करना बहुत सरल है। वह आ कर चरणों में एकदम गिर जाता है। पश्चिमी व्यक्ति को समर्पण करना बहुत कठिन है; चरण छूना ही संभव नहीं मालूम होता, बड़ा कठिन! लेकिन एक और चमत्कार की बात है कि जब पश्चिम का आदमी झुकता है तो निश्चित झुकता है। और पूरब का जब झुकता है तो पक्का भरोसा नहीं। पूरब का आदमी झुकता है तो हो सकता है महज उपचारवश झुक रहा है; झुकना चाहिए, इसलिए झुक रहा है; झुकने की आदत ही हो गई है; बचपन से ही झुकाये जा रहे हैं। मेरे पिता मुझे कहीं ले जाते थे बचपन में, वे फौरन बता देते कि जल्दी छुओ इनके पैर। तो मैं उनसे कहता कि आप कहते हैं तो मैं छू लेता हूं, बाकी इन सज्जन में मुझे छूने योग्य, पैर छूने योग्य कुछ दिखाई नहीं पड़ता। वे कहते, तुम यह बात ही मत करो। यह मामला रिश्तेदारी का है, औपचारिकता का है; तुम यह विवाद में मत पड़ो। मैं तो जहां तुम्हें कहूं, तुम पैर छुओ। ___ 'तुम जहां कहो मैं छू लूंगा। मुझे कोई अड़चन नहीं है। लेकिन एक बात आप खयाल रखना, मैं छू नहीं रहा हूं।' .. औपचारिकता है। पूर्वीय आदमी को अभ्यास कराया गया है सदियों सेः झुक जाओ, विनम्र रहो। अहंकार को बढ़ने का मौका नहीं दिया गया। तो झुक तो जाता है, लेकिन झुकने में कुछ बल नहीं है। बल तो अहंकार से ही आता है और अहंकार तो बढ़ा ही नहीं कभी। पहले से ही पिटी-पिटाई हालत है। पश्चिम का आदमी आता है; झुकने की बात उसे कभी सिखाई नहीं गई; किसी के चरणों में झुकने की बात ही बेहूदी मालूम पड़ती है, संगत नहीं मालूम पड़ती। क्यों? क्यों किसी के चरणों में झुकना? अपने पैर पर खड़े होने की बात समझाई गई। संकल्प को बढ़ाओ। मनोबल को बढ़ाओ। आत्मबल को बढ़ाओ। पश्चिम के आदमी को अहंकार को मजबूत करने का शिक्षण दिया गया है। लेकिन जब भी पश्चिम का कोई आदमी झुकता है तो तुम भरोसा कर सकते हो कि यह झुकना वास्तविक है। नहीं तो वह झुकेगा ही नहीं, क्योंकि औपचारिक तो झुकने का कोई कारण ही नहीं है। पूरब के आदमी का कुछ पक्का नहीं है। कभी-कभी पूरब का आदमी जब नहीं झुकता है, तब सुंदर मालूम पड़ता है, क्योंकि कम से कम इतनी हिम्मत तो है कि उपचार के, परंपरा के, झूठे शिष्टाचार के विपरीत खड़ा . हो सकता है; यह कह सकता है कि नहीं, मेरा झुकने का मन नहीं है। . मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि झुकने के लिए पहले कुछ अहंकार तो होना चाहिए जो झुके। अगर दुनिया की शिक्षा ठीक रास्ते पर चले तो हम पहले अहंकार को बढ़ाने का शिक्षण देंगे। हम प्रत्येक बच्चे को उसके पैर पर खड़ा होना सिखायेंगे। और कहेंगे, संकल्प ही एकमात्र जीवन है। लड़ो! जूझो! संघर्ष करो! झुको मत! टूट जाओ, मिट जाओ, मगर झुको मत! हारना ठीक नहीं, मिट जाना ठीक है। जूझो! जब तक बने, जूझो! और अपने अहंकार को जितनी धार दे सकते हो, धार दो। यह जीवन का पूर्वार्ध, कम से कम पैंतीस साल की उम्र तक तो अहंकार को परिपक्व करने का शिक्षण मिलना चाहिए। फिर पैंतीस साल के बाद जीवन का दूसरा अध्याय शुरू होता है-उत्तरार्ध। फिर समर्पण की शिक्षा शरू होनी चाहिए। फिर आदमी को सिखाया जाना चाहिए कि अब तुम्हारे पास है चरणों में रखने को कुछ, अब झुकने का मजा है। पहले तो फल को कहना चाहिए कि 'तू लटका प्रभ-मंदिर यह देहरी 395

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