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और आखिरी प्रश्न-आखिरी में रखा है, क्योंकि प्रश्न नहीं है, उत्तर है। जैसे मैंने पूछा हो और कोई ज्ञानी आ गये हों, उन्होंने उत्तर दे दियाः 'मैं-तू-वह ये वास्तविक भेद नहीं हैं, शाब्दिक हैं। रुचि या स्थिति-विशेष में इनके अब यह तो उत्तर है, यह कोई प्रश्न नहीं द्वारा परमात्मा को पुकारा जाता है।'
__ है। अगर यह उत्तर तुम्हें मिल गया है,
तो तुम यहां किसलिए आये हो? यहां क्या कर रहे हो? बात खतम हो गयी। और अगर यह उत्तर तुम्हें अभी मिला नहीं है, तो तुम किसको यह उत्तर दे रहे हो और किस कारण? ___आदमी को अपना ज्ञान बताने की बड़ी आकांक्षा होती है। जितना कम हो, उतनी ज्यादा आकांक्षा होती है। इसलिए तो कहते हैं : थोड़ा ज्ञान बड़ा खतरनाक। यह भी तुमने जाना नहीं है कि तुम क्या कह रहे हो? क्यों कह रहे हो? मैंने तुमसे पूछा नहीं। तुम्हें यह उत्तर देने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन फिर भी बिना पूछे तुमने दिया तो धन्यवाद! ऐसे ही तुम मुझे देते रहे तो कभी-न-कभी मैं भी ज्ञानी हो जाऊंगा! ऐसी कृपा बनाये रखना!
एक व्यक्ति आधी रात को सड़क पर घूम रहा था। एक सिपाही ने उसे रोक कर पूछा, श्रीमान, आपके पास इतनी रात गये सड़क पर घूमने का कोई कारण है ? उस व्यक्ति ने सिर ठोंक कर कहा कि यदि मेरे पास कोई कारण ही होता तो मैं कभी का घर पहुंच कर अपनी बीबी के सामने पेश कर चुका होता; कारण नहीं है, इसीलिए तो घूम रहा हूं। ___अगर तुम्हें पता ही चल गया है, जो तुमने कहा है अगर तुम्हें पता चल गया है, तो तुम परमात्मा के सामने उपस्थित हो जाते, तब तो मंदिर का द्वार खुल जाता। इन शाब्दिक समझदारियों में मत उलझो। _ 'मैं, तू, वह—ये वास्तविक भेद नहीं हैं।'
कहा किसने कि ये वास्तविक भेद हैं? तुम सोचते हो कोई भेद वास्तविक होते हैं? भेद मात्र अवास्तविक हैं। तुमको यह खयाल किसने दे दिया कि भेद वास्तविक भी होते हैं?
और तुम कहते हो कि 'मैं, तू, वह-सब शाब्दिक भेद हैं।'
ये शब्द ही हैं, स्वभावतः भेद शाब्दिक होंगे। तुम समझा किसको रहे हो? किसने कहा कि ये शब्द नहीं हैं? और अगर शब्द न होते तो मैं कैसे बोलता, तुम कैसे लिखते? सब शब्द हैं।
'रुचि या स्थिति-विशेष में इनके द्वारा परमात्मा को पुकारा जाता है।'
तुम्हें परमात्मा का पता है? और जब तक स्थिति-विशेष रहे और रुचि-विशेष रहे तब तक परमात्मा से किसी का कभी संबंध हुआ है? अष्टावक्र कहते हैं : 'दृष्टि-शून्यः।' जब दृष्टि शून्य हो जाये, कोई दृष्टि न बचे! जब कोई स्थिति न बचे, कोई अवस्था न बचे, तुम स्थिति और अवस्थाओं के पार हो जाओ-तभी परमात्मा का प्रागट्य होता है। ____ तो अगर कोई रुचि है अभी शेष, तो तुम जिसको पुकार रहे हो वह परमात्मा नहीं है। वह तुम्हारी पुकार है, तुम्हारी रुचि की पुकार है। परमात्मा से उसका क्या लेना-देना? निश्चित ही अलग-अलग
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4