Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 404
________________ हैं। हमारी जीवन-शैली ही भिन्न नहीं होती, हमारी मृत्यु-शैली भी भिन्न होती है। तुम न तो ठीक से जीते न तुम ठीक से मरते। तुम अंधे की तरह जीते हो, अंधे की तरह मरते हो। इसलिए मृत्यु का पूरा दर्शन नहीं हो पाता। जर्मनी का महाकवि गेटे मरण-शैय्या पर पड़ा था। उसने आंख खोली, उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट फैल गई। और उसने कहाः ये दीये बुझा दो। उसके आसपास दीये जल रहे थे। उसने कहाः ये दीये बुझा दो, क्योंकि अब मुझे महाप्रकाश दिखाई पड़ने लगा है। आंख बंद कर ली और मर गया। अब इन दीयों की कोई जरूरत नहीं है। अब मिट्टी के दीये आवश्यक नहीं। अब चैतन्य का दीया जल उठा है। ऐसी प्रतीति तो तभी हो सकती है जब तुमने जीवन की रत्ती-रत्ती स्वर्णमय बना ली हो। जब प्रकाश तुम्हारे जीवन के कण-कण से झरा हो, तो ही मृत्यु के क्षण में महासूर्य प्रगट होगा। इसलिए मृत्यु का अनुभव सभी का अलग-अलग है। और जब तक मृत्यु तुम्हें मुक्ति जैसी अनुभव न हो, समझना जीवन व्यर्थ गया। जब तक मृत्यु तुम्हें प्रभु के द्वार पर खड़ा न कर दे, मृत्यु में तुम्हें प्रभु की भुजायें स्वागत करती हुई न मिलें, उसकी बांहें फैली हुई तुम्हारे आलिंगन को तत्पर न हों तब तक समझ लेना कि जीवन व्यर्थ गया। मृत्यु ने प्रमाण-पत्र नहीं दिया। तुम्हें फिर आना पड़ेगा। मुक्त का अर्थ होता है : जो फिर न आयेगा, जो दुबारा न आयेगा। बुद्ध ने उसके लिए शब्द दिया है : 'अनागामिन', जो फिर नहीं आयेगा, जो दुबारा नहीं लौटेगा। मुक्त का अर्थ है, जिसने जीवन का पाठ सीख लिया; अब इस पाठशाला में दुबारा आने की जरूरत नहीं होगी। मृत्यु में अगर तुम्हें मुक्ति अनुभव हो जाये तो बस फिर कोई जन्म नहीं है। लेकिन मृत्यु में मुक्ति अनुभव कैसे होगी? जीवन में ही अनुभव नहीं हुई तो मृत्यु में कैसे अनुभव होगी? जब सब सुविधा थी, जब आंखें साबित थीं, हाथ-पैर स्वस्थ थे, मन में बल था, भीतर ऊर्जा थी; जब तरंग थी मौजूद; जब तुम चढ़ सकते थे लहर पर और दूर के किनारों तक यात्रा कर सकते थे; जब पाल भर खोल देने की जरूरत थी और जीवन की हवायें तुम्हें दूर की यात्रा पर ले जाती-तब तुम इंच भर न हिले। तो मृत्यु के क्षण में जब सब शिथिल हो जायेगा, पाल फट जायेगा, हवायें सो जायेंगी, ऊर्जा खो जायेगी, सब तरफ गहन सन्नाटा होने लगेगा, तुम थके-हारे गिरने लगोगे कब्र में तब! तब तुम कैसे कर पाओगे? तब बहुत मुश्किल हो जायेगा। टालो मत। जो करना है उसे आज कर लो। कल पर भी मत टालो; क्योंकि कल मृत्यु है, जीवन आज है। जीवन सदा आज है। मृत्यु सदा कल है। अभी तक तुम मरे नहीं। आज तो जीवन है। अभी तो जीवन है। क्षण भर के बाद की कौन कहे! क्षण भर बाद तुम हो या न हो, इस जीवन का उपयोग कर लो। इस जीवन का उपयोग तुम करते हो क्षुद्र में, व्यर्थ में; और सोचते होः कल, जब सब काम चुक जायेगा, जीवन की दूकान बंद करने का समय आ जायेगा, तब फिर याद कर लेंगे परमात्मा को। तुम धोखा दे रहे हो, अपने को धोखा दे रहे हो। मुक्त होना है तो अभी होना है। ध्यान करना है तो अभी करना है। प्रार्थना से भरना है तो अभी 388 अष्टावक्र: महागीता भाग-4 |

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