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देश के अधिकांश प्रतिष्ठित संगीतज्ञ, नर्तक, साहित्यकार, कवि व शायर ओशो कम्यून इंटरनेशनल में अक्सर आने लगे। हालांकि इनमें से अनेकों कवि-कलाकार व्यक्तिगत रूप से ओशो से अनेक वर्षों से परिचित थे, लेकिन शायद पहले दुनियावी यश और प्रतिष्ठा की जंजीरों ने उन्हें यहां आने से रोके रखा था।
26 दिसंबर 1988 को ओशो ने अपने नाम के आगे से 'भगवान' संबोधन हटा दिया। 27 फरवरी 1989 को ओशो कम्यून इंटरनेशनल के बुद्ध सभागार में प्रवचन के दौरान उनके 10,000 शिष्यों व प्रेमियों ने एकमत से अपने प्यारे सद्गुरु को 'ओशो' नाम से पुकारने का निर्णय लिया।
अक्तूबर 1985 में अमरीका की रीगन सरकार द्वारा ओशो को थेलियम नामक धीमा असर करने वाला जहर दिये जाने के कारण एवं उनके शरीर को प्राणघातक रेडिएशन से गुजारे जाने के कारण उनका शरीर तब से निरंतर अस्वस्थ रहने लगा था और भीतर से क्षीण होता चला गया, जिसके बावजूद वे ओशो कम्यून इंटरनेशनल पूना के गौतम दि बुद्धा आडिटोरियम में 10 अप्रैल 1989 तक प्रतिदिन संध्या दस हजार शिष्यों, खोजियों और प्रेमियों की सभा में प्रवचन देते रहे और उन्हें ध्यान में डुबा रहे ।
17 सितंबर 1989 से गौतम दि बुद्धा आडिटोरियम में आधे घंटे के लिए आकर ओशो मौन दर्शन - सत्संग के संगीत और मौन में सबको डुबाते रहे। यह बैठक “ओशो व्हाइट रोब ब्रदरहुड" कहलाती है। 16 जनवरी 1990 तक प्रतिदिन संध्या सात बजे से व्हाइट रोब ब्रदरहुड की सभा में ओशो सत्संग-दर्शन में उपस्थित रहे।
17 जनवरी को वे सभा में केवल नमस्कार करके वापस चले गए। 18 जनवरी को व्हाइट रोब ब्रदरहुड की संध्या-सभा में उनके निजी चिकित्सक स्वामी अमृतो ने सूचना दी कि ओशो के शरीर में इतना दर्द है कि वे हमारे बीच नहीं आ सकते, लेकिन वे अपने कमरे में ही सात बजे से हमारे साथ ध्यान में बैठेंगे। दूसरे दिन 19 जनवरी 1990 की संध्या-सभा में घोषणा की गई कि ओशो अपनी देह छोड़कर पांच बजे अपराह्न को महाप्रयाण कर गए हैं। उसी संध्या ओशो की इच्छा के अनुरूप उनका शरीर गौतम दि बुद्धा आडिटोरियम में दस मिनट के लिए ला कर रखा गया। दस हजार शिष्यों और प्रेमियों ने उनकी आखिरी विदाई का उत्सव संगीत-नृत्य, भावातिरेक और मौन में मनाया। फिर उनका शरीर दाहक्रिया के लिए ले जाया गया। 21 जनवरी 1990 की पूर्वाह्न में उनके अस्थि-फूल का कलश महोत्सवपूर्वक कम्यून में ला कर च्वांग्स हॉल में निर्मित एक संगमर्मर की समाधि में स्थापित किया गया। ओशो की समाधि पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है :
OSHO
Never Born Never Died
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Dec 11 1931 - Jan 19 1990