Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 04 Author(s): Osho Rajnish Publisher: Rebel Publishing House Puna View full book textPage 443
________________ संत वही है जिसका संबंध ही गया। भोग तो व्यर्थ हुआ ही हुआ, त्याग भी व्यर्थ हुआ। भोग के साथ ही त्याग भी व्यर्थ हो जाये तो तुम्हारे जीवन में क्रांति घटित होती है। अनीति के साथ ही साथ नीति भी व्यर्थ हो जाये और अशुभ के साथ साथ शुभ भी व्यर्थ हो जाये; क्योंकि वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, उनमें भेद नहीं है।Page Navigation
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