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निवेदन । इस ग्रंथका निर्माण समाजके उस महात्मा व्यक्ति द्वारा हुआ है कि जिसके नामोच्चारणसेही आत्मा भव्य पवित्रतारूप सुगंधसे सुवासित हो जाता है। ऐसे महात्माका कुछ परिचय पाठकोंको इस ग्रंथकी भूमिकासे होगा। उन्ही महात्माके घड़े भरे हुए समुद्रकी कहावतको चरितार्थ करनेवाले इस अमूल्य ग्रंथराज अष्टपाहुडको लागत मात्र अल्पमूल्यमें प्रदान करनेके लिये जो इस-मुनि श्री अनंतकीर्ति ग्रंथमाला, नाम समितिने प्रयास किया है वह सिर्फ आपकी भव्य नैष्ठय तथा पवित्र आदर्श चर्या-निमित्त ही है । तथा संस्थाने जो इससे पहले ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं तथा प्रकाशित करैगी उसका भी उद्देश्य वही पवित्र आदर्शता है। जिसको कि प्राप्त करना हमारा एक स्वाभाविक कर्तव्य है। उसके इस निमित्तको यथासाध्य कायम रखनेके लिये मंत्री महोदय तथा समति यथाशक्ति प्रयत्नशील है और आशा करता हूं कि आप भी इस प्रयत्नमें भरकस रूपसे सहायक हों जिससे कि अबाधित कार्यसिद्धि हो । इस ग्रन्थका संशोधन, जो किया गया है उसमें अल्पज्ञतासे बहुतसी त्रुटियां होंगी उसके लिये विज्ञ पाठक क्षमा प्रदान करेंगे।
इस ग्रंथके साथ भूमिका, विषय-सूची तथा गाथा-सूची भी पाठकों के सुभीते लिये लगादी है उसमें भी प्रमादजन्य बहुतसी त्रुटियोंकी संभावना है । अतः यहां भी विज्ञपाठकोंसे वैसाही क्षमार्थ निवेदन है । पं. इन्द्रलालजी शास्त्री जयपुरका कापीरूप कार्य सराहनीय है आपने गाथाके पाठभेदको टिप्पणीमें लगा कर बहुत कुछ सुभीता कर दिया है। मुंबई वसंत पंचमी)
रामप्रसाद जैन
बम्बई,
निवेदक
१९८०