Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
40
श्राताधर्मकथासूत्रे
-
वल्लभः यावत् = अत्र यावच्छदेनायं पाठोऽनुसन्धेयः कान्तः कमनीयः प्रियः = प्रीतिकारकः, मनोज्ञः = हृदयावस्थितः, उदुम्बरपुष्पदर्शनमिव दुर्लभः वर्तते, स मम पुत्रः खलु संसारभयोद्विग्नः सन् इच्छति अर्हतोऽरिष्टनेमेः समीपे यावत् प्रव्रजितुम् । अहं खलु निष्क्रमणसत्कारं दीक्षोत्सवं करोमि, हे देवानुमिय ! हे स्वामिन ! अहमिच्छामि खलु स्थापत्यापुत्रस्य निष्क्रामतः = दीक्षाग्रहणं कुर्वतः छत्रचामराणि छत्रचामरमुकुटादीनि वितीर्णानि भवद्भिः प्रदत्तानि भवन्तु इति, अहमेतदर्थं भवतां समोपे समागता यत् वह छत्रचामरादीनि भवन्तो वितरन्तु इति भावः ।
ततः खलु कृष्णवासुदेवः स्थापत्यागाथापत्नीमेवमवादीत् । हे देवानुभिये ! स्वं खलु सुनिर्वृता = स्वस्था, विस्वस्था = विशेषतः स्वस्था, सुधीरा, आस्स्व तिष्ठ एक ही अङ्गजात स्थापत्य पुत्र नाम का पुत्र है । वह ( इट्ठे जाव सेणं संसारभasoori ) मुझे बल्लभ हैं । यावत् शब्द से इस पाठ का यहां संग्रह हुआ है- वह बहुत अधिक कमनीय है प्रीतिकारक है, मनोज्ञ है, मेरे हृदय में स्थान किये हुए है । और उदम्बर पुष्प के दर्शन के समान दुर्लभ है । वह मेरा पुत्र संसारभय से उद्विग्न होकर ( इच्छह अरहओ अरिट्ठनेमिस्स जाव पव्वतए) अहत अरिष्ट नेमि प्रभु के पास दीक्षित होना चाहता है ( अहण्णं निक्खमणसत्रकारं करेमि, इच्छामिण देवाणुपिया ! थावच्चापुस्तस्स निक्खममाणस्स छतम उचामराओ य विदिनाओ ) सो मैं उसका दीक्षोत्सव करना चाहती हूँ । इसलिये हे देवानुप्रिय ! मैं आपसे यह चाहती हूँ कि आप मुझे उस निमित्त - निष्क्रमण स्थापत्य पुत्र की दीक्षोत्सव के निमित्त छत्र, चामर और मुकुट आदि दे देवें। (तएणं कण्हे वासुदेवे थावच्चा
For Private And Personal Use Only
"
पत्यापुत्र नाभे भेडनो पुत्र छे. ते ( इट्ठे जान सेणं संसार भय उब्बिग्गे) भने प्रिय छे. अहीं ( यावत् ) शब्थी भायानो संग्रह थयो छे ते उभनीय (रिछत्रायोग्य ) छे, प्रीतिभर छे, भनोज्ञ छे, भारा हृदयभां ते સ્થાન પામેલા છે. તેમજ ઉમરડાના પુષ્પના ક્રેનની જેમ તે દુર્લભ છે. તે सौंसारना लयथी व्याहून था ( इच्छछ अरहओ अरिट्ठनेमिस्स जाव पव्त्रइत्तए ). अर्हत गरिष्टनेमि प्रभुथी दीक्षित थवा थाडे छे. ( अहंण्ण निक्खमण सकार करेमि इच्छामिण देवाणुपिया ! यावच्चापुत्तस्स निकलममाणस्स छत मउडचामराओ य विदिन्नओ) हु° तेनेो दीक्षाना उत्सव उजवा छु छु. भेटला भाटे डे દેવાનુંપ્રિય ! આપ મને તે ઉત્સવ નિમિત્ત નિષ્ક્રમણ-સ્થાપત્યાપુત્રના દીક્ષોત્સવ भाद छत्र शाभराने भुमुद वगेरे आयो. ( तरणं कण्हे वासुदेवे भावचा