Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शाताधर्मकथाङ्गो कातिकचातुर्मासिके 'कायकाउस्सगे' कृतकायोत्सर्गः · देवसिय ' देवसिकं पतिप्रमण परिक्रान्ता-कृतवान् , चातुर्मासिकं पडिकमिउं कामे ' प्रतिक्रमितुकामः शैलकं राजर्षि 'खामणट्टयाए ' क्षमापनार्थाय शीर्षेण मस्तकेन पादयोः संघटयति स्पृशति । ततस्तदनन्तरं खलु स शैलकः शैलकराजर्षिः पान्थकेन-पान्थकानगारेण शीर्षण पादयोः संघट्टितः संस्पृष्टः सन् 'आसुरुत्ते ' आशुरुप्तः अटिविकोपयुक्तः, यावत् क्रोधानलवेगेन 'मिसिमिसेमाणे' मिसमिसन् देदीप्यमानः 'उठेइ उत्तिष्ठति, ' उहित्ता' उत्थाय एवं वक्ष्यमाणपकारेण अवादीत् ‘से' सः'केस' एषः एतादृशः कोऽस्ति खलु भोः ! 'एस' एषः ' अप्पत्थियपत्थिय ' अमार्थितमार्थका, यावत् परिवर्जितः श्री ही धी रहितः, यः खलु मा. पंथए कत्तिय चाउम्मासिंयंसि कय काउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं पडिकंते चाउम्मासिय पडिक्कामिउकामे सेलयं रायरिसि खामणयाए सीसेणं पाए संघट्टेइ ) इसी समय पांथक अनगार ने उसी चतुर्मास के कार्तिक महीने में कायोत्सर्ग करके देवसिक प्रतिक्रमण किया। फिर चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने की इच्छा से उसने शैलक राजऋषि के अपने कृत दोषो की क्षमा याचना निमित्त मस्तक से दोनों चरणों का स्पर्श किया। (तएणं से सेलए पंथएणं सीसेणं पाएसुसंघटिए समाणे
आसुरूसे जाव मिसिमिसे माणे उट्टेइ ) पांथक अनगार के मस्तक से दोनों चरणों में स्पृष्ट हुए वे शैलक राजर्षि इकदम कोप से लाल हो गये । और मिस मिसाते हुए यावत् क्रोधानल के वेग से दे दीप्यमान होते हुए-वे उठकर बैठ गये। ( उद्वित्ता एवं वयासी ) बैठकर इम प्रकार कहने लगे- (से केसणं भो एस अप्पत्थिय पत्थिए जाव परिव(तपण से पथए कत्तियचाउम्मासि यसि कयकाउस्सगो देवसिय पडिक्कमणं पदिक्कते - चाउग्मासिय पडिकामिउकामे से लय रायरिसि खामणदयाए सीसेण पोएसु संघट्टेइ ). या मते यातुर्मासना ति: भासमा पांथ सनारे કાયેત્સર્ગ કરીને દેવસિક પ્રતિક્રમણ કર્યું. ત્યાર પછી ચાતુર્માસિક પ્રતિક્રમણ કરવાની ઈચ્છાથી તેમણે પિતાના દોષેની ક્ષમાપના માટે શૈલક २.१/पिना योमा पोताना भत्तानो २५श यो. तएण से सेलए पथएणं सीसेणं पाएसु. संघट्टिएसु ' समाणे आसुरुत्ते जाव मिसमिसेमाणे उद्वेइ ) પાંચક અનગારના મસ્તકના બંને પગમાં થયેલા સ્પર્શથી શૈલક રાજઋષિ એકદમ લાલ ચેળ થઈ ગયા અને ક્રોધ ની જવાળામાં સળગતા તેઓ ही मेह। ५५ या. ( उद्वित्ता एवं वयासी) मेह! इन तमासे या प्रमाणे
For Private And Personal Use Only