Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text ________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
198/
ज्ञाताधर्मकथासूत्रे
मन्नस्स एवमाइक्खइ ४ धन्नेणं देवाप्पिया ! णंदे मणियारे जस्स णंदे मणियारे जस्स णं इमेयारूवे णंदा पुक्खरणी चाउ कोणा जाव पडिरुवा | जस्स णं पुरत्थिमिले वणसंडे चित्तसभा 'अणेगखंभ० तहेव चत्तारि सहाओ जाव जम्प्रजीवियफले, तरणं तस्स दद्दरस्स तं अभिक्खणं अभिक्खणं बहुजणस्स अंतिए
७
एयमहं सोच्चा णिसम्म इमेयारूवे अज्झथिए ५ - से कहिं मन्ने मए इमेारू सहे सिंतपुत्रे तिकट्टु सुभेणं परिणामेणं जाव जाइसरणे समुपपन्ने, पुव्वजाई सम्मं समागच्छइ, तरणं तस्स दद्दरस्स इमेयावे अज्झत्थिए ५ - एवं खलु अहं इहेव रायगिहे नयरे णंदे णामं मणियारे अड्डे० जाव अपरिभूए । तेणं कालेणं तेणं समपणं समणे भगवं महावीरे समोसढे, तपर्ण समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसि - क्खावइयं जाव पंडिवन्ने, तएणं अहं अन्नया कयाइं असाहुदंसणेण य जाव मिच्छत्तं विपडिवन्ने, तरणं अहं अन्नया कयाई गिम्हकालसमयंसि जाव उपसंपजित्ताणं विहरामि, एवं जहेव चिंता आपुच्छणा नंदा पुक्खरिणी वणसंडा सहाओ तं चैव सव्वं जाव नंदाए पुक्खरिणीए दद्दरत्ताए उववन्ने, तं अहो णं अहं अहन्ने अपुन्ने अकयपुन्ने निग्र्गथाओ पावयणाओ नट्टे भट्ठे परिब्भट्ठे तं सेयं खलु ममं सयमेव पुव्व पडिवन्नाई पंचाणुव्वयाई सत्तसिक्खावयाई उवसंपजित्तार्ण विहरित्तए, एवं संपेहेइ संपेहित्ता पुत्र पडिवन्नाई पंचाणुव्वयाई सत्तसिक्खावयाई आरुहेइ आरुहित्ता इमेयारूवं अभिग्गहं
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only
Loading... Page Navigation 1 ... 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845