Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 826
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाताधर्मकथा भाषते प्रज्ञापयति प्ररूपयति-धन्यः खलु हे देवानुपिय ! नन्दो मणिकाररश्रेष्ठी यस्य खलु इयमेतद्रपा नन्दापुष्करिणी चतुःकोणा समतीरा यावत् प्रतिरूपा वर्तते, यस्याः खलु नन्दायाः पुष्करिण्याः पौरस्त्ये वनपण्डे चित्रसभाऽनेकस्तम्भशतसंनिविष्टा तथैव चतुर्पु वनपण्डेषु चतस्रः सभा अनेकस्तम्भशतसंनिविष्टाः सन्ति, यावत् तस्य नन्दमणिकारश्रेष्टिनः सुलब्धं मानुष्यकं जन्मजीवितफलम् । पहायमाणो य पियइ य पाणियं च संवहमाणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४ ) उस नंदा पुष्करिणी में जब राजगृह नगर के लोग आकर स्नान करते, पानी पीते, उसमें से पानी भरते तो उस समय वे परस्पर में इस प्रकार से बात चीत करते, भाषण करते प्रज्ञापना एवं प्ररूपणा करते कि ( धन्नेणं देवाणुप्पिया ! गंदे मणियारे जस्स णं इमेयारूवा गंदा पुक्खरणी चाउकोणा जाव पडिरूवा ) हे देवानुप्रिय ! मणिकार श्रेष्ठी नंद को धन्यवाद है कि जिम की यह चतुष्कोण वाली तथा समतीर वाली नंदा पुष्करिणी बहुत ही सुरम्य बनी है। (जस्स ण पुरथिमिल्ले वणसंडे चित्तसभा अणेगखंभ० तहेव चत्तारि सहाओ जाव जम्मनी विय फले-तएणं तस्स दद्दरस्स तं अभिक्खणं २ बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म इमेयारूबे अन्भत्थिए ६ ) जिस के पूर्व दिशा संबन्धी वनषंड में अनेक सैकडों खंभो से विराजित चित्र सभा घनी हुई है। इसी तरह की चारों वनषंडों में चारों सभाएँ है । यावत् उस मणिकार नंद श्रेष्ठी के मनुष्य माणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४) नही मां न्यारे राम नगरना લેકે આવીને સ્નાન કરતા, પાણી પીતા, તેમાંથી પાણી ભરતા ત્યારે તેઓ પરસ્પર આ પ્રમાણે વાતચીત કરવા માંડતા, સંભાષણ કરવા માંડતા, પ્રજ્ઞાપના भने ५३५।। ४२१॥ मांडता है (धन्नेर्ण देवाणुपिया ! गदे मणियारे जस्सणं इमेयारूवा गंदी पुक्खरणी चाउकोणा जाव पडिरूवा) वानुप्रिय! मणिार શ્રેષ્ઠિ નંદને ધન્યવાદ છે. કારણ કે આ ચાર ખૂણાવાળી તેમજ સરખા કિનારાपाणी न वा महु २-५ धावी छे. (जस्सणं पुरथिमिल्ले वणसडे चित्तसभाअणेग खंभ० तहेव चित्तारि सहाओ जाव जम्मजीवियफळे-तएणं तस्स दद्दुररस त अभिक्खणं २ बहुजणस्स तिए एयम, सोचा णिसम्म इमेयारूवे अज्झस्थिए ६) पावन पू हशाना बनभां से । थामदामाथी શોભતી ચિત્રસભા બનાવી છે. આ પ્રમાણે ચારે ચાર વનષડમાં ચાર સભાઓ તૈયાર કરાવડાવી છે. ખરેખર તે મણિકાર નંદ શેઠને મનુષ્ય જન્મ અને જીવન For Private And Personal Use Only

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