Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 792
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७३६ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे 6 विहारं विहारामि । ततः खलु स नन्दो मगिकारश्रेष्ठी अन्यदा कदाचित् 'असाहुदंसणेणय' असाधुदर्शनेन = कुगुरुसंसर्गेग 'अपज्जुवासणाए ' अपर्युपासनया च गुरना सेवनेन 'अणणुसासणाए य' अननुशासनया च सुगुरोरुपदेशाभावेन अमुस्सूसण | ए य' अशुश्रूपणया च सुगुरोरन्तिके धर्मश्रवणाभावेन च, तथा ' सम्मत्तपज्जवेहिं' सम्पक्तपर्यवैः परिहायमाणेहिं ' परिहीयमानैः २ क्रमशः क्षीयमाणैः 'मिच्छत्तपज्जवेहिं मिथ्यात्वपर्ययैः ' परित्रमाणेहिं ' परिवर्द्धमानैः = पुनः पुनः क्रमशो वृद्धिमुपगतैः सः नन्दमणिकारश्रेष्ठी मिथ्यात्वं मिथ्यास्वभावं प्रतिपन्नः = प्राप्तः = मिथ्यास्त्री जातश्चाप्यभूत् । ततः खलु नन्दोमाणिकारश्रेष्ठी यारसेट्ठी इमीसे कहाए लट्ठे समाणे पहाए० पायचारेणं जाव पज्जुवासह, गंदे धम्मं सोच्चा, णिसम्म समणोवासए जाए ) उसी काल में और उसी समय में हे गौतम | मैं उस राजगृह नगर में बिहार करता हुआ पहुँचा। वहाँ का समस्त परिषदा वंदन। नमस्कार करने के लिये गुलिक चैत्य में आई । श्रेणिक राजा भी आया। जब उस मणि कार श्रेष्ठी नंद को मेरे आने का समाचार मिला तो वह भी स्नान आदि से निश्चिन्त होकर पैदल ही मेरी वंदना करने के लिये आया । वहां आकर वह वंदना, नमस्कार कर यथा स्थान पर बैठ गया । उसने श्रुन चारित्र रूप धर्म का व्याख्यान सुनकर गृहस्थ धर्म धारण कर लिया अर्थात् वह श्रमणोपासक वन गया । (तएणं अहं रायगिहाओ पडि निक्खते बहिया जगवयविहारं विहरामि ) इसके बाद मैं वहां से राजगृह से निकला और निकल कर बाहर जनपदों में विहार करने राया णिग्गए, तर से गंद मणियारसेट्ठी इमी से कहाए लट्ठे समाणे व्हाए० पायचारेण जाय पज्जुवास, गंदे धम्मं सोचा, णिसम्म समगोवासए जाए ) તે કાળે અને તે સમયે હૈ ગૌતમ ! હુ` વિહાર કરતા કરતા રાજગૃહ નગરમાં પહોંચ્યા નગરની પરિષદા ગુણુશીલક ચૈત્યમાં વંદના અને નમસ્કાર કરવા માટે આવી. શ્રેણિક રાજા પણ વંદન તેમજ નમન કરવા માટે આવ્યા હતા. મણિચાર શ્રેષ્ઠિ ન ંદને જ્યારે મારા આવવાના સમાચારશ મળ્યા ત્યારે તે સ્નાન વગેરેથી પરવારીને પગપાળા જ મને વ ંદન કરવા માટે આવ્યા ત્યાં આવીને વંદન તેમજ નમન કરીને તે ઉચિત સ્થાને બેસી ગયેા. શ્રુતચારિત્રરૂપ ધર્મનું વ્યાખ્યાન સાંભળીને તેણે ગૃહસ્થ ધર્મ ધારણ કરી લીધા એટલે કે તે શ્રમણાपास थ5 गये. (तरण अह रायगिहाओ पडिनिक्खते बहिया जणवयविहार' विहरामि ) त्यारपछी हु त्यथी -रामगृह नगरथी नीडज्यो भने नीडजीने महार જનપદ્દમાં વિહાર કરવા લાગ્યા. For Private And Personal Use Only

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