Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 800
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org = Ce शाताधर्मकथासूत्रे ते बनवण्डाः ' अणुपुवेणं' अनुपूर्वेण अनुक्रमेण 'सारक्खिज्जमाणा संरक्ष्यमाणाः पशुपक्ष्याद्युपद्रवतः ' संगोप्यमानाः संगोबिज्जमाणा हिमवनदवादिभ्यः, 'संर्वाड्रिज्जमाणा य' संवर्ध्यमानाश्च = जलसेकादिना वृद्धि प्राप्ता सन्तः वनपण्डाः पूर्णरूपेण परिणता जाताः । कीदृशास्ते जाताः ? इत्याह -' किण्डा ' इत्यादि ' किव्हा ' कृष्णाः - हरितत्वातिशयेन कृष्णवर्णा 'जाव ' यावत्- 'निकुरूंबभूया' महामेघनिकुरम्बभूताः सजलजलधरनिकरसदृशाः पत्रिताः पुष्पिताः ' जाव उसोभेमाणा २ ' यावत् श्रिया - वनपण्डश्रिया अतीव उपशोभमानाः २ तिष्ठन्ति । ततः खलु नन्दः मणिकार श्रेष्ठी पौरस्त्ये वनपण्डे एकां महतीं चित्रसभां कारयति । कीदृशाम् ? इत्याह- ' अणेगे ' त्यादि - ' अणेगखंभ = " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदने (नंदीए पोखरणीए चउद्दिसिं ) नंदा पुष्करिणी की चारों दिशाओं में (चत्तारिवणसंडे रोवावेह ) चार वनषंड आरोपित करवाये ( एणं ते वणसंडा अणुपुच्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविजमाणा संवडिजमाणाय वणसंडा जाया किण्हा जाव निकुरंबभूया पत्तिया पुष्फिया जाव उसोभेमाणा २ चिति) आरोपित किये गये वे चारों वनषंड क्रमशः संरक्षित होते हुए - पशु पक्षी आदि के उपद्रव से बचते हुए एवं हिमवर्षा - दवाग्नि आदि से रहित होते हुए खूब वृद्धिंगत हो गये। इन में चारों ओर हरियाली २ छा गई इस से ये काले काले दिखलाई देने लगे- ऐसे मालूम देते थे मानों जल से भरे हुए मेघहों । पत्र और पुष्पों से युक्त होने के कारण इन की शोभा कुछ निराली ही बन गई थी । (तएण णंदे मणियार सेट्ठी पुरच्छिमिल्ले वणसंडे एवं महं चित्त For Private And Personal Use Only -1) ( viąte dìzazoîte asfefè ) d'a yolkyl (919) Al que aug (aft वणस' डे रोवावेइ ) यार वनषडो शयावडाव्यां (तएणं ते वनम्रडा अणुपुव्वेण सारक्खिमाणा सगोविज्जमाणा वढिज्जमाणाय वणसंडा जाया किव्हा जाव निब-भूया पत्तिया पुफिया जाव उवसोभेमाणा २ चिट्ठति ) पायेला ते ચારેચાર વનડા અનુક્રમે સંરક્ષિત થતા-પશુપક્ષી વગેરેના ઉપદ્રવેાધી સંરક્ષા ચેલા અને હિમ, વનનેા અગ્નિ ( દાવાનલ) વગેરેથી સરક્ષિત થઈને ખૂબ જ વૃદ્ધિ પામ્યા. તેમાં ચેામેર હરીયાળી પ્રસરી ગઈ. તેથી તેઓ શ્યામ દેખાશ લાગ્યા હતા જાણે કે પાણીથી ભરેલા મેઘ હાય. પાંદડાં અને પુષ્પોથી યુક્ત होत्रा महा तेथोनी शोला मेडम निराणी थई गई हती. मणियार सेट्ठीं पुरच्छिमिल्ले वणस डे एवं मद्द चित्तसभ ( तएर्ण ण दे करावेइ, अणेगख भ

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