Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 837
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भंगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १३ नन्दमणिकारभवनि पणम् k स्वामी इहैव गुणशिलके चैत्ये समवस्तोऽस्ति । तत्-तस्माद् अहमपि गच्छामि खलु श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दे नमस्यामि एवं संप्रेक्षते-विचारयति, संप्रेक्ष्य नन्दायाः पुष्करिणीतः शनैः शनैरुत्तरति-बहिनिः सरती, उत्तीर्य यौव राजमार्गस्तवोपागच्छति, उपागत्य तया (१) 'उकिटाए ' उत्कृष्टया, अोदं बोध्यम्-.. (२) "तुस्यिाए (३) चवलाए, (४) चंडाए, (४) सिग्याए, (६) उधुयाए, (७). जयणाए, (८) छेयाए, " इति । तत्र-उत्कृष्टया-दई राणां गतौ य उत्कर्षस्तेनयुक्तोगतिरुत्कृष्टा तयेत्यर्थः । त्वरितया-मनस औत्सुक्येन युक्ता त्वरिता तया, भगवं महावीरे इहेव गुणसिलए चेइए समोसढे, तं गच्छामि गं समणं ३ वंदामि जाव पज्जुवोसामि एवं संपेहेइ, संपेहित्ता गंदाओ पुक्खरणीओ सणियं २ उत्तरइ ) श्रमण भगवान महावीर प्रभु यहाँ गुण शिलक उद्यान में आये हुए हैं तो चलू श्रमण भगवान महावीर को वंदना करूँ यावत् उनकी पर्युपासना करूँ। ऐसा उसने विचार कियाविचार कर के फिर वह उस नंदा पुष्करिणी से धीरे २ बाहिर निकला(उत्तरित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए दद्दुर गइए वीइवयमाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव पहारेत्य, गमणाए ) बाहिर निकल कर फिर वह जहां राजमार्ग था, उस ओर चल दिया। वहां पहुंच कर फिर वह उस उत्कृष्ट दर्दुर गति से चलता हुआ मेरी ओर बढा। यहां " तुरियाए, चवलाए, चेडाए, सिग्याए, उधुयाए, जयणाए, छेयाए" इन पदों का भी संग्रह कर लेना चाहिये उस द१र की गति को उत्कृष्ट इसलिये कहा है कि दर्दुरो की गति में संपेहित्ता गंदाओ पुक्खरणीओ सणियं २ उत्तरइ) श्रम ससवान महावीर प्रभु અહીં ગુણશિલક ઉદ્યાનમાં પધારેલા છે. ત્યારે હું પણ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદન થાવત્ તેમની પથું પાસના-સેવા કરે. આ જાતને તેણે વિચાર કર્યો. વિચાર કર્યા પછી તે નંદા વાવમાથી ધીમે ધીમે બહાર નીકળે. (उत्तरित्ता जेणेव रायमगे तेणे उबागच्छइ, उषागच्छित्ता ताए उकिदाए ददुरः गहुए वीइवयमाणे जेणेव मम अंतिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए) महार नजान તે જે તરફ રાજમાર્ગ હતા તે તરફ ચાલવા માંડયા. ત્યારપછી તે પિતાની ઉહ (શીઘ) દેડકાની ગતિથી ચાલતા ચાલતે મારી તરફ આવ્યો. અહીં (रियाए, चवलाए, चंडीए, सिग्धाए, उध्दुयाए, जयणाए छेयाए) मा पहान પણ સંગ્રહ કરવો જોઈએ. તે દેડકાની ગતિ ઉત્કૃષ્ટ:એટલા માટે વર્ણવવામાં આવી છે કે દેડકાઓની ગતિમાં જે ઉત્કર્ષ હોય છે તે ગતિ તેનાથી યુકત For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845