Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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हाताधर्मकथासूमे 'अणेगाई' इत्यादि-अनेकानि योजनानि आयामविष्कम्भेण दैर्ध्यपरिणाहेन, अनेकानि योजनानि परिक्षेपेण-परिधिना, नानामषण्डमण्डितोद्देशः अनेकवनपण्डमण्डितप्रदेशः सश्रीका-शोभासम्पन्नः, प्रासादीय?-मनः प्रसन्नता हेतुत्वात् , दर्शनीयः-नेत्राहादकत्वात् , अभिरूपः अपूर्वसौन्दर्यवत्वा, प्रतिरूमा-प्रशस्ताकृतिफत्वात् । तस्य खलु द्वीपस्य बहुमध्यदेशभागे-मध्यस्थले तत्र खलु एको महान् मासादावतंसकःश्रेष्ठपासादो आसीत्। स कीदृशः ? इत्याह-अभुगय ! इत्यादि -'अभुगयं ' अभ्युद्गतः विशालः 'असियए' उच्छ्रितका गगनतलस्पर्शी यावत् सश्रीकः-सुरूपः शोभनाकारः प्रासादीयः ४ । तत्र खलु प्रासादावतंस के रत्न. द्वीपदेयता नाम देवता ‘रयणादेवी' इति प्रसिदा देवी परिवसति-निवास णाइं परिक्खेवेणं णाणादुमसंडमंडिउद्देसे सस्सिरीए पासाइए ४ ) जिस प्रदेश में वह पोतवहन भग्न हुआ था, उसी प्रदेश में एक बड़ा भारी रत्नद्वीप नाम का द्वीप था। इसका आयाम और विष्कंभ अनेक योजन का था। परिधि भी इसकी अनेक योजन की थी। नोना प्रकार के वृक्षों के समूह से इस का भीतरी बाहिरी प्रदेश हरा भरा बना हुआ था। यह द्वीप बहुत ही शोभासंपन्न था। मन को प्रसन्न करनेवाला था। दर्श नीय था। तथा अपूर्व सौन्दर्य से युक्त था। एवं आकृति में भी यह बड़ा अभिराम था। (तस्स णं बहुमज्झदेसभाए तत्थणं एगे महं पासा. यवडेंसए होत्या-अब्भुग्गयमूसियए जाव सस्सिरीए सुरूवे पासाईए ४) इस द्वीप के ठीक.मध्य भाग में एक विशाल श्रेष्ठ प्रासाद था! यह बहुत अधिक ऊँचा था। अपनी ऊँचाई से यह आकाश तक को स्पर्श करतो था। बहुत सुन्दर था। दर्शनीय आदि विशेषणों वाला था। (तत्थ णं
નાવ જ્યાં ડૂબી હતી તેની આસપાસના પ્રદેશમાં એક બહુ મોટે રત્નદ્વીપ નામે દ્વીપહતે. આ દ્વીપનો આયામ અને વિષ્કભ ઘણું પેજના સુધી વિસ્તાર પામેલ હતા. આ દ્વીપની પરિધિ પણ ઘણું જ સુધીની હતી. ઘણી જાતના વૃક્ષોના સમૂહથી તે દ્વીપને અંદર અને બહારના ભાગ લીલો છમ દેખાતે હતો. તે દ્વીપ ખૂબ જ સુંદર હતું. મનહર હિતે, મનને પ્રસન્ન કરે તે હો, દર્શનીય હતે. અપૂર્વ સૌંદર્યથી તે યુક્ત હતા તેમજ આકારમાં પણ તે અત્યંત સુંદર હતા.
( तस्स णं बहुमज्झदेसभाए तत्थणं एगे महं पासायव.सए होत्था-अब्भुग्गय मूसियए जाव सस्सिरीए सुरूवे पासाईए ४)
તે દ્વીપની વચ્ચે એક વિશાળ ઉત્તમ મહેલ હતું. તે ખૂબ જ ઊંચે હતો. પિતાની ઊંચાઈથી તે આકાશને પણ સ્પર્શતું હતું તે ખૂબ જ સુંદર હતો. દર્શનીય વગેરે વિશેષતાઓથી યુક્ત હતે.
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