Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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माताधर्मकथाङ्गस्त्रे पञ्चशाल्यक्षतान् ' सुद्धे' शुद्धे-पवित्रे ' वत्थे ' वस्त्रे 'बंधइ' बध्नाति-'बंधित्ता' वध्वा ' रयणकरंडियाए' रत्नकरंडिकायां-रत्नडिबिकायां ' पक्खिवेइ ' प्रक्षिपति रक्षार्थ स्थापयति 'पक्खिवित्ता' प्रतिक्षिप्य स्थापयित्वा 'उसीसामूले' उच्छीर्षकमूले-उपधानस्याधोभागे ठावेई ' स्थापयति ठावित्ता' स्थापयित्वा 'तिसंझं' त्रिसंध्यं-प्रातमध्याह्नसायंकाललक्षणे 'पडिजागरमाणी' प्रति जाग्रती तद्रक्षार्थ सावधानासती । विहरइ ' विहरति ।। सू० ४ ॥ ___मूलम्-तएणं से धण्णे सत्थवाहे तहेवमित्त जाव चउत्थिं रोहिणीयं सुण्हं सद्दावेइ सदावित्ता जाव तं भणियध्वं एत्थ कारणेणं तं सेयं खलु मम एए पंच सालि अक्खए सारक्खेमाणीए संगोवेमाणीए संबड्डेमाणीए तिकदृ एवं संपेहेइ संपेहित्ता कुलघरपुरिसे सहावेइ सदावित्ता एवं वयासी - तुब्भेणं देवाणुप्पिया! एए पंच सालि अक्खए गिण्हइ गिणिहत्ता पढम पाउसंसि महावुटिकायंसि निवइयंसि समाजसि खुड्डागं केयारं सुपरिकम्मियं करेह करित्ता इमे पंच सालि अक्खए अक्खए सुद्धे वत्थे बंधइ, बंधित्ता रयणकरंडियाए पक्खिवेइ, पक्खि. वित्ता उसीसामूले ठावेइ, ठावित्ता तिसंझं पडिजागरमाणी विहरइ ) ऐसा जब उसने विचार किया तो विचार करके उसने उन पांच शाल्य क्षतों को शुद्ध वस्त्र में बांधा बांधकर उन्हें फिर रत्ननिर्मित एक डब्बे में रख दिया । रखकर उस डब्बे को उसने उसीसे-के नीचे भाग में सिरहाने के अधोभाग में रख दिया। इस तरह वह प्रातः मध्यान्ह
और सायंकाल में इन तीनों कालों में उसकी संभाल में सावधान होकर रहने लगी। सूत्र " " . पक्खिवित्ता उसीसा मूले ठोवेइ रावित्ता तिसंझं पडिजागरमाणी विहरई:) माम વિચારીને તેણે પાંચ શાલિકને શુદ્ધ વસ્ત્રમાં બાંધીને રત્ન જડેલી એક ડાબલીમાં મૂકી દીધા. ડાબલીમાં મૂકીને તેણે તે ડાબેલીને પિતાના એશીકાની નીચે મૂકી દીધી. આ પ્રમાણે તે સવાર બપોર અને સાંજ આમ
વખત તે ડાબલીને સંભાળીને રાખવા લાગી. તે સૂવ જ છે
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