Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 825
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारधामृतवर्षिणी टोका अ० १३ नन्दमणिकारभवनिरूपणम् ७ अभिगिण्हइ-कप्पड़ मे जावजीवं छद्रंछठेणं अणिक्खित्तण तवोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणस्स विहरित्तए, छट्रस्स वि य ण पारणगंसि कप्पइ मे गंदाए पोक्खरणीए परिपेरंतेसु फासुएणं पहाणोदएणं उम्मणोल्लोलियाहि य वित्तिं कप्पेमाणस्स विहरित्तए, इमेयारूवं अंभिग्गहं अभिगेण्हइ, जावज्जीवाए छटुंछटेणं जाव विहरइ ॥ सू० ७ ॥ टीका-'तपणं नंदे' इत्यादि, ततः खलु नन्दो दर्दुरी गर्भाद-गर्भवासाद विनिर्मुक्ता निर्गतः सन् उन्मुक्तबालभावः व्यतीत बाल्यवयस्कः, 'विनाय परिणयमित्ते' विज्ञातपरिणतमात्रः द? रजातीयकूदनादिविज्ञानसमम्पनः, नन्दायांपुष्करिण्याम् अभिरममाणः २ क्रीडन् २ सुखसुखेन विहरति-कालं यापयतिस्म । ___ ततस्तदनन्तर खलु नन्दायां पुष्किरिण्यां राजगृहविनिर्गतो बहुजनः स्मान कुर्वन् , जल पियन् , पानीयं च संवहमानः, अन्योन्य-परस्परम् . आख्याति 'तएणं गंदे दद्दुरे गम्भाओ' इत्यादि । टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (गंदे दद्दुरे) वह नंद सेठका जीव दर (गम्भाओ विणिम्मुक्के समाणे उम्मुक्कबालभावे विनायपरिणयमित्त जोत्वणगमणुपत्ते नंदाए पोक्खरणीए अभिरममाणे २ विहरइ ) गर्भावास से बाहिर निकल कर जब बालभाव से रहित हो गया और उसे दर्दुर जाति को कूदना आदि आ गया-तब वह यौवन अवस्था संपन्न होकर नंदा पुष्करिणी में बार २ क्रीडा करता हुआ सुख पूर्वक अपने समय को व्यतीत करने लगा। (तरण गंदाए पोखरणीए बहुमणे 'तएणं गंदे दद्दुरे गम्भाओ' इत्यादि साथ-(तएणं) त्या२५छी (गंदे दुरे) न शहने। आना (गम्भाओं विणिम्मुक्के समाणे उम्मुक्कबालभावे विन्नायपरिणय से जोधणगमणुपत्ते नक्षए पोक्खरणीए अभिरममाणे २ विहराइ) सलमाथी महार मापीन पारे મેટ થઈ ગયો એટલે કે બચપણ વટાવીને જુવાન થઈ ગયા અને બીજાં દેડકાની જેમ કૂદવાનું, વગેરે આવડી ગયું ત્યારે તે જુવાન થઈને નંદા પુes. રિણીમાં જ વારંવાર કીડા કરતાં સુખેથી પિતાને વખત પસાર કરવા લાગ્યા (तएवं दाए पोक्खरणीए बहुजणे व्हायमाणो य पियइथ पाणिय च संबह हा ९७ For Private And Personal Use Only

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