Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 797
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ०१३ नन्दमणिकारभववर्णनम् नन्दा पुष्करिणी अनुपूर्वेण=क्रमेण खन्यमाना खन्यमाना पुष्करिणो जाता चाप्यासीत् , सा कीदृशी जाता ? इत्याह-' चाउकोणा' इत्यादि-'चाउकोणा ' चतुष्कोणासमतीरा समम् = उन्नतत्वावनतत्वरहितं तीरं-तटप्रदेशो यस्याः सा तथोक्ता, ' अणुपुबसुजायवप्पगंभीरसीयलजला ' अनुपूर्वे सुजातवप्रगम्भीरशीतलजलाअनुपूर्वेण-क्रमेण नीचर्नी चैस्तरादिभावरूपेण सु-सुष्ठु अतिशयेन यो जातः वप्रःकेदाराकारं जलस्थानं तत्र गम्भीरम् अगाधं शीतलं च जलं यस्यां सा तथा, ' संछण्णपत्तविसमुणाला ' संछन्नपत्रबिसमृणाला-संछन्नानि जलेनान्तरितानि जलमग्नानोत्यर्थः पत्राणि-कमलदलानि बिसानि-कमलकन्दाः मृणालानिमल. होकर निकला। निकलकर फिर वह वास्तु शास्त्र के वेत्ताओं द्वारा निदिष्ट स्थान पर पहुँचा-वहाँ पहुँचकर उसने नंदा नाम की बावडी खुदवानी प्रारंभ कर दी। (तएणं सा नंदा पोक्खरणी अणुपुव्वेणं खणमाणा २ पोकवरणी जाया यावि होत्था चाउकोणा, समतीरा, अणुपुव्व सुजयावप्पगंभिरसीयलजला, संछण्णपत्तबिसमुणाला, बहुप्पलपउमकुमुयनलिणसुभगसोगंधियपुंडरीयसयपत्तसहस्सपत्तयफुल्ल केसरोववेयापरिह. स्थभमन्तमत्तछप्पयअणेगसउणगणमिणविहरियसदुन्नयमहुरसुरनाइ. या पोसाईया) क्रमशः खुदती २ वह नंदा पुष्करिणी एक दिन वास्तविक पुष्करिणी के रूप में तैयार हो गई। इसके चारकोने थे। तट प्रदेश इसका समान था। ऊँचाई नीचाई से रहित था। इस पावडी का अगाध शीतल जल से भरा हुआ नीचेका जल स्थान बहुत नीचा बहुत गहरा था और क्रम क्रम से निष्पन्न करने में आया था। इसमें આવીને તે રાજગૃહ નગરની વચ્ચે થઈને નીકળે. નીકળીને તે વાસ્તુશાસ્ત્રના નિષ્ણાતે વડે બતાવવામાં આવેલા સ્થાન ઉપર પહોંચ્યું અને ત્યાં જઈને તેણે नहानामनी पाप महावी. २३ ४२री दीधी. (तएणं सा नंदा पोक्खरणी अणु पव्वेणं खणमाणा २ पोक्खरणी जाया यावी होत्था चाउकोणा, समतीरा, अणुपु. व्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजला सछण्णपत्तविसमुणाला, बहुप्पलपउमकुमुयनलिणसुभा गसोग धियपुडरीयमहापुडरीयसयपत्तसहस्सपत्तयफुल्लकेसरोववेया परिहत्थयम तमत्त उप्पयअणेगसउणगणमिहुणविचरियसदुन्नइयमहुरसुरनाइया पासाईया) माम. ४२२१ દતાં ખોદતાં છેવટે એક દિવસે નંદા પુષ્કરિણી વાવ) સંપૂર્ણ પણે ખેદાઈ ગઈ. તેને ચાર ખૂણા હતા. કિનારાને ભાગ તેને એક સરખો હતો એટલે કે ઊંચે નીચે નહોતે. આ વાવનું અગાધઠંડા પાણીથી ભરેલું નીચેનું જળ સ્થાન ખૂબ જ ઊંડું For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845