Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 750
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधर्मकथाङ्गसूत्रे मनस्तृप्तिकरम् अशनं पानं खाद्यं स्वाधं वर्णेन-शुभवर्णेन उपपेतं यावत् स्पर्शेनोपपेतम् , ' आसायणिज्जे ' आस्वादनीयम् आस्वादनयोग्यम् , 'विस्सायणिज्जे' विस्वादनीयं-विशेषत आस्वादनयोग्यम् , ' पीणणिज्जे' प्रीणनीयं समस्तेन्द्रिय पीतिजनकम् , ' दीवणिजे ' दीपनीयं = जठराग्निदीपनकं शरीरसौन्दर्यजनकं वा, 'दप्पणिज्जे ' दर्पनीयं बलजनकम् , मयणिज्जे ' मदनीयं-कामोद्दीपकम् - बिहणिज्जे 'बृहणीयं-सकलधातूपचयजनकम् , सर्वेन्द्रियगात्रमहादनीयं-सकलेन्द्रियशरीरसुखजनकं वर्त्तते । ततः खलु ते बहवः ईश्वर यावत् सार्थवाहप्रभृतयो जितशत्रु प्रत्येवमवदन् 'तहेवं' तथैव तादृशमेव खलु हे स्वामिन् ! यत्खलु यूयं वदथ, अहो ! खलु इदं मनोज्ञमशन पानं खाद्यं स्वाद्यं चतुर्विधमप्याहारं वर्णेन उपपेतं प्रियो ! मनको तृप्ति करने वाला यह अशनादि रूप चतुर्विध आहार कितने अच्छे शुभवर्ण से युक्त था, कितने अच्छे शुभ स्पर्श से युक्त था कितना अच्छा आस्वादनीय एवं विशेषरूप से स्वादनीय था इसे खाकर समस्त इन्द्रियां तृप्त हो गई हैं। यह जठराग्नि का दीपक है, अ. थवा शारीरिक सौन्दर्य का जनक है। बलवर्धक है। कामोद्दीपक है। इसे खाने वाले की समस्त धातुएं उपचित हो जाती हैं। समस्त इन्द्रि. यों एवं शरीर को इसके खाने से आनन्द पहुँच रहा है । तात्पर्य यह चतुर्विध आहार बड़ा ही आश्चर्यकारक है (तएणं ते बहवे इसर जाव पभिइओ जियसत्तू एवं वयासी) और अधिक क्या कहूँ यह तो बहुत ही अधिक उत्तम था। राजा की इस प्रकार बात सुनकर उन ईश्वर आदि अनेक सार्थवाहोंने उन जितशत्रु राजा से इस प्रकार कहा (तहे व णं सामी ! जण्णं तुम्भे वदह-अहो णं इमे मणुण्णे असणं ४ वण्णेणं હે દેવાનપ્રિયે ! મનને તૃપ્ત કરનારે આ અશન વગેરેને ચાર જાતને આહાર કેટલે શુભ વર્ણવાળે હતા, કેટલો બધો શુભસ્પર્શવાળ હતા, કેટલે સરસ આસ્વાદનીય અને સવિશેષરૂપથી સ્વાદનીય હતે. આ આહારને જમીને ઇન્દ્રિયે બધી તૃપ્ત થઈ ગઈ છે. આ જઠરાગ્નિનો ઉદ્દીપક છે તેમજ શારીરિક સૌદર્યમાં વૃદ્ધિ કરનાર છે. બળવર્ધક અને કામોદ્દીપક છે. એને જમવાથી બધી ધાતુઓ ઉપચિત ( વૃદ્ધિ પામવું ) થઈ જાય છે. આ આહારથી બધી ઈન્દ્રિયે તેમજ શરીરને આનંદની પ્રાપ્તિ થાય છે. મતલબ એ છે કે આ यार तना माहा। महु नवाई पाउ तवा छे. ( तएणं ते ईसर जाव पभिइओ जियसत्तू एवं वयोसी ) मने पधारे शुंडी शहीये. ते मई ઉત્તમ હતું એમાં તે જરાએ શંકા નથી. રાજાની આ વાત સાંભળીને તે ઈશ્વર વગેરે ઘણું સાર્થવાહએ તે જિતશત્રુ રાજાને આ પ્રમાણે કહ્યું કે (तहेव णं सामी ! जणं तुब्भे वदह-अहोणं इमे मणुण्णे असणं ४ वण्णेणं For Private And Personal Use Only

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