Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 802
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माताधर्मकथा वस्तुसमूहेन निष्पाद्यन्ते लोहकाष्ठादिभीदथादिवत् , तानि, एतानि पशुपक्ष्यादिरूपाणि ' उवदंसिज्जमाणाई २' उपदृश्यमानानि २ लोकैरन्योन्यं पुनः पुनरुपर्यमानानि तिष्ठन्ति-सन्ति । तत्र खलु बहूनि 'आसणाणिय ' आसनानिवेत्रकाष्ठादिनिर्मितानि चतुष्कोणादिरूपाणि शयनानि शयनयोग्यानि सार्द्धतृतीयहस्तपरिमितानि फलकादीनि, कीदृशानीत्याह-' अत्थुय ' इत्यादि-' अत्थुयप चत्थुयाई' आस्तृतप्रत्यास्तृतानि, आस्तृतानि मृदुलवस्त्रादिनाऽऽच्छादितानि, प्र. स्यास्तृतानि = तदुपरि पुनःपुनकूलादिनाऽऽच्छादितानि तिष्ठन्ति वर्तन्ते । पुनश्च-तत्र खलु बहवो नटाच-गाननृत्यकर्तारः ' णट्ठा य' नृत्ताः केवलमावि क्षेपमात्रेण नर्तनशीलाश्च यावत् 'दिनभइभत्तवेयणा' दत्तभृतिभक्तवेतनाः-दत्ताः मिट्टी, खरियामिट्टी से बल्ली आदि की उसमें रचना करवाई । ग्रन्थिम, वेष्टिम, पूरिम, एवं संधातिम आदि अनेक खेल भी उस में दिखलाए (तस्थणं यहूणि आसणाणि य, सयणाणि य, अत्थु य पञ्चत्थुयाई चिट्ठति तत्थणं बहवे णडाय गट्टा य, जाव दिन्नभइभत्तवेयणा तालायकम्म करेमाणा विहरंति) अनेक आसन, शयन, जो आस्तृत प्रत्यास्तृत थे वे भी उसमें रखवाये, वेत्र अथवो काष्ठ आदि से निर्मित चतुष्किकादि रूप-कुर्सी आदिरूप जो होते हैं वे ओसन हैं एवं साढे तीन हाथ के जो काष्ठ फलक-नखता आदिरूप होते हैं कि जिन पर अच्छी तरह सोया जा सकता है वे शयन हैं। इन आसन शयनों के ऊपर मृदुल चन्नादि, विछा हुआ था इसलिये ये आस्तृत थे, और उन मृदुल वस्त्रा दिकों के ऊपर और भी दूसरा पलंग पोस बिछा हुआ था इस लिये वे प्रत्यस्तृत थे। नंद सेठ ने उस चित्र सभा में नटों को नत्तों को-नृत्यરચના કરાવડાવી. પ્રથમ, વેષ્ટિમ, પૂરિમ અને સંઘાતિમ વગેરે ઘણી જાતની २भत ५ तेमा रा१वी ( तत्थण बहूणि आसणाणि य, सयणाणि, य, अत्थुय पञ्चत्थुयाई चिति, तथण बहवे णडाय णट्ठा य, जाव दिनभइभत्तवेयणा तालायकम्मं करेमाणा विहरति ) घ! यासनी, घशी पथारीमा २ सास्तव પ્રયાસ્તુત હતા–પણ તેમાં મુકાવડાવી. વેત્ર કે લાકડા વગેરેથી બનાવવામાં આવેલી ચતુષ્કિકા વગેરે રૂપ ખુરશી રૂપ જે હોય છે તે આસન છે. અને સાડા ત્રણ હાથના જે લાકડાના તખતા વગેરે હોય છે કે જેના ઉપર સારી રીતે સૂઈ શકાય તે શયન છે. આ આસને તેમજ શયનોની ઉપર કમળ વો વગેરે પાથરેલાં હતાં. એટલા માટે જ તેઓ આસ્તૃત હતા તે કોમળ વસ્ત્રો વગેરે ઉપર એક બીજું વસ્ત્ર પાથરેલું હતું એટલા માટે એઓ પ્રત્યાસ્વત હતા, નંદ શેઠે તે ચિત્ર સભામાં નટે, નુત્તનાચનારા માણસે-તિ, For Private And Personal Use Only

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