Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७
. हाताधर्मकथासूत्र प्रतिग्रहेण प्रतिलाभयन् सत्कारयन् संमानयन् यावद् विहरति-विचरति । ततस्तदनन्तरं खलु स शुकः परिव्राजकः सौगन्धिकाया नगर्या निर्गच्छति, निर्गत्य च बहिर्जनपदविहारं विहरति-करोतिस्म ॥ १९॥
मूलम् तेणं कालेणं तेणं समएणं थावच्चापुत्तस्स समोसरणं, परिसा निग्गया सुदंसणो वि णिग्गओ, थावच्चापुत्तं वंदह नमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-तुम्हाणं किं मूलए धम्मे पन्नत्ते ? तएणं थावच्चापुत्ते सुदंसणेणं एवं वुत्ते समाणे सुदंसणं एवं वयासी-सुदंसणा अम्हाणं विणयमूले धम्मे पन्नत्ते सेवि य विणए दुविहे पन्नत्ते तं जहा-अगारविणए अणगार विणए य,तत्थ णं जे से अगारविणए से णं चत्तारि अणुव्वयाई सत्त सिक्खावयाई, एकारस उवासगपडिमाओ। तत्थणं जे से अणगारविणए से णं चत्तारि महाव्वयाई, तं जहा-सव्वाओ पाणाइवायाओवेरमण सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अंगीकार करके उन्होंने फिर अशन पान, खाद्य और स्वायरूप चारों प्रकार के आहार से और वस्त्र के प्रदान से उस शुक परिव्राजक को लाभान्वित किया सत्कारित किया, सन्मानित किया। (तएणं से सुए परिवायगे सोगंधियाओ नयरीओ निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता पहिया जणवयविहारं विहरह) इसके बाद वह शुक परिव्राजक सौगंधिका नगरी से निकला और निकल कर बाहर अन्य देशों की ओर विहार कर गया। "सू-१९" ૩) શૌચ મૂલક ધર્મ સ્વીકારીને તેમણે શુક પરિબજકને અશન, પાન, ખાદ્ય અને સ્વાદ રૂપ ચારે પ્રકારના આહાર તેમજ વસ્ત્રો અપને લાભાન્વિત કર્યો मन सन्मान यु. (तरण से सुए परिव्वायगे सोगंधियाओ नयरीओ नि. च्छइ, निग्गच्छित्ता बहिया जणवपविहार विहरइ) त्या२ ५छी शुॐ परिवार સગરિકા નગરીથી બહારના બીજા દેશે તરફ વિહાર કરવા નીકળ્યા સૂ૦૧૯
For Private And Personal Use Only