Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Kanahaiyalalji Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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शाताधर्मकथागते मणियारसेट्टी अन्नया गिम्हकालसमयांस जेट्टामूलंसि मासंसि अट्टमभत्तं परिगेण्हइ परिगेण्हित्ता पोसहसालाए जाव विहरइ, तएणं गंदस्स अट्ठमभत्तसि परिणममाणंसि तण्हाए छुहाए प अभिभूयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झस्थिए समुप्पज्जित्था-धन्नाणं ते राईसर जाव सत्थवाहप्पभियओ जेसिं णं रायगिहस्स बहिया बहुओ वावीओ पोक्खरणीओ जाव सरसरपंतियाओ जत्थ णं बहुजणो पहाइ य पियइ य पाणियं च संवहइ, तं सेयं खलु मम कलं पाउ० सेणियं आपुच्छित्ता रायगिहस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए वेभारपव्वयस्स अदूरसामंते वत्थुपाढगरोइयसि भूमिभागंसि जाव आंदं पोक्खरणिं खणावेत्तए त्तिकद्दु एवं संपेहेइ कल्लं पाउ० जाव पोसहं पारेइ पारित्ता पहाए कयबलिकम्मे मित्तणाइ जाव संपरिबुडे महत्थं जाव रायारिहं पाहुडं गेण्हइ गेण्हित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता जाव पाहुडं उवटवेइ उवट्टवित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं सामी! तुब्भेहि अब्भणुनाए समाणे रायगिहस्स बहिया जाव खणावेत्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया !, तएणं णंदे सेणिएणं रन्ना अब्भणुण्णाए समाणे हट्ट रायगिह मज्झं मज्झेणं निग्गच्छइ २ वत्थुपाढयरोइंसि भूमिभागसि गंदं पोक्खरणि खणाविउं पयत्ते यावि होत्था, तएणं सा गंदा पोक्खरणी अणुपुवेणं खणमाणा.२ पोक्खरणी जाया यावि होत्था
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