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पत्र
विषय ऐसा साधु मोक्षकी प्राप्ति करता है। ... ...
... ३५५ देहस्थ आत्मा कैसा जानने योग्य है।
.. ३५६ 'पंचपरमेष्टी आत्मामें ही हैं अतः वही शरण है।
... ३५६ चारों आराधना आत्माहीमें हैं अतः वही शरण हैं । मोक्ष पाहुड पढ़ने सुननेका फल। ... ...
... ३५० टीकाकारकृत मोक्षपाहुडका सार रूप कथन । ... ग्रंथके अलावा टीकाकारकृत पंच नमस्कार मंत्र विषयक विशेष वर्णन। ३६२
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लिंगपाहुड। अरहंतोंको नमस्कार पूर्वक लिंग पाहुड वनानेकी प्रतिज्ञा । ... भावधर्मही वास्तविक लिंग प्रधान है। पापमोहित दुर्बुद्धि नारदके समान लिंगकी हंसी करैं हैं। ... ३६९ लिंग धारणकर कुक्रिया करें हैं वे तिर्यंच हैं। ...
३७० ऐसा तिर्यंच योनि है मुनि नहीं। ... ... ... लिंगरूपमें खोटी क्रिया करनेवाला नरकगामी है। लिंगरूपमें अब्रह्मका सेवनेवाला संसारमें भ्रमण करता है। ... कौनसा लिंगी अनंत संसारी है। ... किस कर्मका करनेवाला लिंगी नरकगामी है। ...
३७२ फिर कैसा हुआ तिर्यंच योनि है। ... ... कैसा जिनमार्गी श्रमण नहीं हो सकता। ... चोरके समान कोनसा मुनि कहा जाता है। ... लिंगरूपमें कैसी क्रियायें तिर्यंचताकी द्योतक हैं। भावरहित श्रमण नहीं है। ... ... स्त्रियोंका संसर्ग विशेष रखनेवाला श्रमण नहीं पार्श्वस्थसे भी गिरा है। पुंश्चलीके घर भोजन तथा उसकी प्रशंसा करनेवाला ज्ञान भाव रहित है श्रमण नहीं। ... ... ...
.. ... ३८० लिंगपाहुड धारण करनेका तथा रक्षा करनेका फल ... ... ३८१
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