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और गये। बीच में सत्संग चल रहा और वे कहेंगे, बस! गये पहाड़ी पर! दिन में कई दफा चले जाते थे। फिर भी पहाड़ी तो बड़ी थी, तो पूरी पहाड़ी पर कई हिस्से थे जहां तक नहीं पहुंच पाते थे।
तो एक दिन अपने भक्तों को कहा कि 'कल तो मैं उपवास करूंगा ताकि लौटना न पड़े। कल तो दिन भर भूखा रहूंगा और सांझ तक खोज करूंगा; कई जगह खाली रह गई हैं जहां मैं नहीं पहुंचा इस पहाड़ी पर। दूर से कहीं कोई झरना दिखाई पड़ता है, उसके पास नहीं जा पाया। तो कल तो मैं भोजन नहीं करूंगा।'
तो भक्तों ने कहा : 'यह बड़ी झंझट की बात है।' तो रात को खूब उनको भोजन करवा दिया, खूब करवा दिया। उन्होंने बहुत रोका कि भई, बस अब रुको; कल मुझे पहाड़ पर जाना है और तुम इतना करवाये दे रहे हो कि चलना मुश्किल हो जायेगा। लेकिन भक्त न माने, तो उन्होंने कर लिया। साक्षी-भाव वाले आदमी की ऐसी दशा है। ठीक, पहले इनकार करते हैं, फिर कोई नहीं मानता तो वे कहते हैं, चलो ठीक। सुबह उठ कर गये तो एक भक्त को मन में भाव रहा कि ये जा तो रहे हैं, लेकिन दिन भर भूखे रहेंगे, तो वह कुछ नाश्ता बना कर दूर जरा रास्ते के बैठ गया था। सुबह जब ब्रह्ममुहूर्त में वे वहां से जाने लगे तो उसने पैर पकड़ लिए। उसने कहा कि नाश्ता ले आया हूं। उन्होंने कहाः 'हद हो गई! अरे, मुझे घूमने जाना है, अब तुम देर करवा दोगे!' तो उसने कहा कि जल्दी से कर लें आप! वे नाश्ता करके चले कि थोड़ी दूर पहुंचे थे कि पांच-सात स्त्रियां चली आ रही हैं। वे कहें कि ये रहे हमारे स्वामी। उन्होंने कहा ः 'क्या मामला?' उन्होंने कहा ः 'हम भोजन बना कर ले आये।' उन्होंने कहा ः 'यह तो हद हो गई! अब इनको दुखी करना भी ठीक नहीं, ये न मालूम कितनी रात से आ कर यहां बैठी हैं!' भोजन कर लिया। स्त्रियों ने कहाः 'आप घबराना मत। हम दोपहर में फिर आयेंगे, दोपहर का भोजन ले कर।' उन्होंने कहा : 'तुम आना मत, क्योंकि मैं दूर निकल जाऊंगा। तुम खोज न पाओगे।' उन्होंने कहाः ‘आप फिक्र न करो। एक स्त्री आपके पीछे लगी रहेगी।' वह एक स्त्री पीछे ' लगी रही। उन्होंने कहा : 'यह भी मुसीबत हुई!' और दोपहर को वे आ गईं खोज-खाज कर, उनको फिर भोजन करवा दिया। अब तो उनकी ऐसी हालत हो गई कि लौटें कैसे!
लौट कर किसी तरह आये। वहां तक भी न पहंच पाये जहां रोज पहंच जाते थे। किसी तरह लौट कर आये तो भक्तों ने खूब भोजन तैयार कर रखा था कि लौट कर प्रभु आयेंगे...। तो उन्होंने कहा 'कसम खाई अब कभी उपवास न करूंगा। यह तो बड़ा...उपवास तो बड़ा महंगा पड़ गया।' फिर कहते हैं, रमण ने कभी उपवास नहीं किया। उन्होंने कहा: 'कसम खा ली, यह उपवास बड़ा महंगा है। इससे तो हम जो रोज भोजन करते रहते थे, वही ठीक था।'
एक साक्षी की दशा है: जो होता है होता है। उपवास किया तो भी जिद्द नहीं है। तमने अगर उपवास किया होता तो तुम कहतेः 'क्या समझा है तुमने? मेरा उपवास तोड़ने आये! ये मालूम होती हैं, स्त्रियां नहीं हैं, इंद्र की भेजी अप्सरायें हैं। तुम अकड़ कर खड़े हो गये होते, शीर्षासन लगा लिया होता, आंख बंद कर ली होती कि छूना मत मुझे, दूर रहना, उपवास किया है! यह भ्रष्ट करने का उपाय है! लेकिन रमण ने कहाः बेचारी स्त्रियां हैं, इतनी रात आई हैं, अब चलो ठीक है।
एक साक्षी की दशा है, जो देखता चला जाता है। रमण के हाथ में कैंसर हो गया। जो आश्रम का डाक्टर था, कुछ बहुत समझदार नहीं था। आश्रम के ही डाक्टर! उसने उनको बाथरूम में ले जा कर
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4