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३२ : सम्बोधि
__ दो चींटियां थीं। एक चीनी के ढेर पर रहती और दूसरी नमक के ढेर पर। एक बार नमक के ढेर पर रहनेवाली चींटी, दूसरी चींटी से मिलने गई। चीनी के ढेर पर रहनेवाली चींटी ने उसका स्वागत किया और चीनी का एक दाना खाने के लिए आग्रह किया। उसने एक दाना खाया और तत्काल बोल उठी--'अरे, यह भी खारा है।' चींटी ने कहा--'नहीं, चीनी मीठी होती है, खारी नहीं।' उसने कहा-'नहीं, मेरा मुंह खारा होता जा रहा है।' चीनी के ढेर पर रहनेवाली चींटी ने उसका मुंह देखा तो उसमें नमक का एक छोटा-सा टुकड़ा दीखा । वह रहस्य को ताड़ गई। उसने कहा-'बहन ! पहले इसको बाहर फेंक, तब तुझे चीनी मीठी लगेगी, अन्यथा नहीं।
मान्यताओं को छोड़े बिना यथार्थ का ज्ञान नहीं होता। स्व और पर के यथार्थ ज्ञान के अनन्तर जो आचरण होता है वह मान्यता नहीं रहती। मान्यता के अभाव में प्रियता और अप्रियता की कल्पना ही टूट जाती है।
अमनोज्ञा द्वेषबीज, राग-बीजं मनोरमाः।
द्वयोरपि समः यः स्याद्, वीतरागः स उच्यते ॥२०॥ २०. अमनोज्ञ विषय द्वेष के वीज हैं और मनोज्ञ विषय राग के। जो दोनों में सम रहता है-राग-द्वेष नहीं करता, वह वीतराग कहलाता है।
विषयेष्वनुरक्तो हि, तदुत्पादनमिच्छति । रक्षणं विनियोगञ्च, भुजस्तान् प्रति मुह्यति ॥२१॥ २१. विषयों में जो अनुरक्त है वह उनका उत्पादन चाहता है। उनके उत्पन्न होने के बाद वह उनकी सुरक्षा चाहता है और सुरक्षित विषयों का उपभोग करता है। इस प्रकार उनका भोग करनेवाला एक मूढ़ता के बाद दूसरी मूढ़ता का अर्जन कर लेता है । यह 'कडेण मूढो पुणो तं करेइ' का सिद्धान्त है। जो अपने कृत दुराचार से मूढ़ होता है, वही बार-बार उस दुराचार का सेवन करता है।
व्यक्ति में पहले पदार्थों के प्रति आकर्षण होता है। आकर्षण से प्रेरित होकर वह उन पदार्थों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता है । ज्यों-त्यों उन्हें प्राप्त कर वह उन्हें सुरक्षित रखना चाहता है और लम्बे समय तक उनका उपभोग करने की इच्छा
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