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अध्याय १६ : ३७३
होने का तुमने अवसर ही नहीं दिया । इन्द्रियों और मन की चेतना से युति है वही परमात्मा की अभिव्यक्ति का मूल स्रोत है ।
यल्लेश्यो म्रियते लोकस्तल्लेश्यश्चोपपद्यते । तेन प्रतिपलं मेघ !, जागरूकत्वमर्हसि ॥१६॥
१६. यह जीव जिस लेश्या ( भावधारा) में मरता है उसी लेश्या
( उसी भावधारा की अनुरूप गति) में उत्पन्न होता है । इसलिए है मेघ ! तू प्रतिपल आत्म जागरण में जागरूक बन ।
जीवनस्य तृतीयेऽस्मिन्, भागे प्रायेण देहिनाम् ।
आयुषो जायते बन्धः शेषे तृतीयकल्पना ॥ २०॥
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२०. सोपक्रम ( किसी निमित्त से आयु की अवधि अल्प हो जाती है, वैसी) आयु वाले जीवों के जीवन के तीसरे भाग में नरक आदि आयु में से किसी एक आयु का बन्धन होता है । जीवन के तीसरे भाग में आयु का बन्धन न हुआ तो फिर तीसरे भाग के तीसरे भाग में आयु का बन्धन होता है। उनमें भी बन्धन न हुआ हो तो फिर अवशिष्ट के तीसरे भाग में आयु का बन्धन होता है । इस प्रकार जो आयु शेष रहती है उसके तीसरे भाग में आयु का बन्धन होता है ।
तृतीयो नाम को भागो, नेति विज्ञानमर्हसि । सर्वदा भव शुद्धात्मा, तेन यास्यसि सद्गतिम् ॥२१॥
२१. जीवन का तीसरा भाग कौन-सा है इसे तू जान नहीं सकता । इसलिए सर्वदा अपनी आत्मा को शुद्ध रख, इस प्रकार तू सद्गति को प्राप्त होगा ।
जीवन ओस की बूंद की तरह है, कब गिर जाए यह पता नहीं है, इसलिए 'प्रमाद मत करो - यह आत्म- द्रष्टाओं का उद्घोष है । मनुष्य यह बुद्धि से जानता है, किन्तु जागरूक नहीं रहता, जापानी कवि 'ईशा' के सम्बन्ध में कहा जाता हैबत्तीस, तेतीस वर्ष की उम्र में उसके परिवार के पांच सदस्य, पत्नी, बच्चे मर
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