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४४४ : सम्बोधि
अहंकार और ममत्व के विसर्जन के पश्चात् कुछ है या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । नहीं है तब भी आनन्द है और है तब भी, क्योंकि अपना कुछ नहीं है । दुःख अपनेपन में है | ध्यान और विसर्जन की सिद्धि के बाद साधक सर्वदा समाधिस्थ और स्वस्थ रहता है । तपोयोग का यह अन्तिम पड़ाव है। यहां तप साधन समाप्त हो जाता है । साधन साध्य में परिवर्तित हो जाता है । द्वैत मिट जाता है और अद्वैत का स्वर मुखरित हो उठता है ।
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