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२३४ : सम्बोधि
हिंसा से शांति नहीं, शस्त्रों का निर्माण होता है। अहिंसा की आत्मा को जानने वाला व्यक्ति ही हिंसा का नाश कर सकता है। हिंसा की आग कभी बुझ नहीं सकती। संभूम चक्रवर्ती ने ब्राह्मण से वैर लेने के लिए पृथ्वी को ब्राह्मण-हीन कर दिया तो परशुराम ने इक्कीस बार उसे क्षत्रियहीन बनाया। हिंसा प्रतिशोध को जन्म देती है। विवेकवान् व्यक्ति अहिंसा में शांति देखता है, आत्म-स्वभाव की समुपासना में धर्म को देखता है।
असारे नाम संसारे, सारं सत्यं हि केवलम् ।
तत् पश्यन्तो हि पश्यन्ति, न पश्यन्ति परे जनाः ॥४०॥ ४०. इस सारहीन संसार में केवल सत्य ही सारभूत है। सत्य को देखने वाले ही देखते हैं । जो सत्य को नहीं देखते, वे कुछ भी नहीं देख पाते ।
भगवान् ने कहा-'सच्चं लोगम्मि सारभूयं'-लोक में सत्य ही सारभूत है। सत्य क्या है ? इसका उत्तर यही है कि जो वीतराग द्वारा कथित है, वही सत्य है । इसको समझना ही अपने आपको समझना है। जो व्यक्ति सत्य को देखता है वही आत्म-द्रष्टा हो सकता है । जो सत्य को नहीं देखता वह कुछ भी नहीं देखता। ___ सत्य विराट् है। सत्य भगवान् है । सत्य असीम है। इसको परिभाषा में बांधना सहज-सरल नहीं है।
सिंहं यथा क्षुद्रमृगाश्चरन्तश्चरन्ति दूरं परिशङ्कमानाः । समीक्ष्य धर्म मतिमान् मनुष्यो, दूरेण पापं परिवर्जयेच्च ॥४१॥
४१. जैसे घास चरने वाले क्षुद्र मृग सिंह से डरते हुए उससे दूर रहते हैं, उसी प्रकार मतिमान् पुरुष धर्म को समझकर दूर से पाप का वर्जन करे।
पाप का अर्थ है-अशुभ प्रवृत्ति। जिस प्रवृत्ति से आत्मा का हनन होता है, वह पाप है। पाप त्याज्य है। उसके स्वरूप को पहचानकर जो व्यक्ति उससे दूर हटता है, वह धर्म के निकट चला जाता है । जो व्यक्ति आत्म-धर्म समझकर पाप से बचते हैं, वे बहुत शीघ्र धर्म के क्षेत्र में प्रवेश पा जाते हैं और जो लज्जावश या भयवश पाप से बचते हैं, वे समय आने पर स्खलित हो जाते हैं और धर्म में प्रवेश सुलभता से नहीं पा सकते। जो दिन में या रात में, अकेले में या समुदाय में, सोते हुए या
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