Book Title: Sambodhi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 482
________________ परिशिष्ट-१ : ४१६ (६) तालु मूल के ललना चक्र को घण्टिका स्थान और दशम द्वार-मार्ग कहते हैं। इस चक्र पर ध्यान लगाने से मुक्ति मिलती है। (७) आज्ञाचक्र में वर्तुलाकार ज्योति का ध्यान करने से साधक मोक्ष पद पाता है। (८) ब्रह्मरन्ध्र में अष्टम चक्र स्थित सुई की नोक जैसा धूम्राकार जालन्धर नामक स्थान पर ध्यान द्वारा चित्त नय करने से निर्माण पद मिलता है। (8) सोम-चक्र में पूर्ण सच्चिद्रूपा अर्द्धशक्ति का ध्यान करने से मनोलय होता है । एवं मोक्ष पद-लाभ होता है। (१०) परम-आनन्द के साथ अपने हृदय के बीच में इष्ट देवता की मूर्ति का 'ध्यान करने से साधक आत्मलीन हो जाता है। (११) एकान्त में शववत् (मुरदे जैसा) चित्त लेट कर एकाग्रचित्त से अपने दाहिने पैर के अंगूठे पर दृष्टि स्थिर करके ध्यान करने से शीघ्र ही चित्तलय होता है । यह चित्तलय करने का प्रधान और सहज उपाय है। (१२) जीभ को तालुमूल में लगा ऊपर उठाये रखें। इससे चित्त एकाग्न होकर परम पद में लीन हो जाता है। (१३) नाक के ऊपर दृष्टि रखकर बारह अंगुल पीली या आठ अंगुल लाल वर्ण की ज्योति का ध्यान करने से चित्तलय हो जाता है एवं वायु स्थिर हो जाता है। (१४) ललाट के ऊपर शरद् के चन्द्र जैसी श्वेत वर्ण-ज्योति का ध्यान करने से मनोलय हो जाता है एवं आयु बढ़ती है। (१५) देह के बीच में निर्वात निष्कम्प दीपकलिका जैसा अष्ट अंगुल ज्योति का ध्यान करने से जीव मुक्त हो जाता है । (१६) दोनों भौहों के बीच सूर्य जैसे तेजपुञ्ज का ध्यान करने से ईश्वर का सन्दर्शन मिलता है। श्वास-जिसने आनापान (श्वास) स्मृति का सम्यक् अभ्यास कर लिया है वह व्यक्ति बादलों से मुक्त आकाश में चन्द्रमा की भांति लोक को प्रकाशित करता है। आनापान-स्मृति ध्यान का महत्व इससे स्पष्ट होता है। श्वास शरीर का वह भाग है जो निरन्तर स्वेच्छा पूर्वक गतिशील रहता है। श्वास के सम्बन्ध में विविध विधियां प्रयुक्त हुई हैं। उन सभी का ध्येय है-~-अपने चैतन्य में प्रवेश कराना। स्वरोदय विज्ञान सारा श्वास पर खड़ा है, जिसे शिवजी कहते हैं-'ज्ञानानां मस्तके मणि :-समस्त ज्ञानों के मस्तिष्क पर यह मणि-सदृश है। “यह स्वरोदय शास्त्र समग्र शास्त्रों में श्रेष्ठ है। यह आत्मारूपी घड़े को प्रकाशित करने के लिए दोप शिखा की तरह है।" साधारण कार्यों के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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