________________
३८८ : सम्बोधि
बस पकड़ना है केवल अपने को । मेघ ने महावीर को बीच से हटा दिया । वह अकेला, अनवरत साधना पथ पर बढ़ता रहा । साधना सिद्ध हुई और महावीर सामने खड़े हो गए। अब मेघ और महावीर के बीच द्वैत नहीं रहा । कृतज्ञता के स्वरों में मेघ की आत्मा नर्तन करने लगी । साधक सहजोबाई ने कहा है- भगवान् को छोड़ सकती हूं पर गुरु को नहीं । भगवान् ने कांटे ही कांटे बिछाए और गुरु को दूर हटा दिया | उसने बड़े मीठे सरस और उपालम्भ भरे पद कहे हैं
राजविनारू, गुरु को सम हरि को न निहारूं । हरि ने जाम दियो जग माही, गुरु ने आवागमन छुड़ाहि । हरि ने पांच चोर दिए साथा, गुरु ने लई छुड़ाया अनाथा || हरि ने कुटुम्ब जाल में गेरी, गुरु ने कारी ममता वेरी । हरि ने रोग भोग उरझायो, गुरु जोगी कर सर्व छुड़ायो । हरि ने मोसूं आप छिपायो, गुरु दीपक देताहि दिखायो । फिर हरि बंधि मुक्ति गति लाये, गुरु ने सबही मर्म मिटाये ॥ चरण दास पर तन मन बारूं, गुरु न तजूं हरि को तज डारू ॥
निर्ग्रन्थानामधिपतेः, प्रवचनमिदं महत् 1 प्रतिबोधश्च मेघस्य, शृणुयाच्छ्रद्दधीत यः ॥ ४८ ॥ निर्मला जायते दृष्टिर्मार्गः स्याद् दृष्मिागतः । मोहश्च विलयं गच्छेन्मुक्तिस्तस्य प्रजायते ॥ ४६॥
४८-४९. निर्ग्रन्थों के अधिपति भगवान् महावीर के इस महान् प्रवचन को और मेघकुमार के प्रतिबोध को जो सुनता है, श्रद्धा रखता है, उसकी दृष्टि निर्मल होती है, उसे सम्यग् पथ की प्राप्ति होती है, मोह के बन्धन टूट जाते हैं और वह मुक्त बन जाता है ।
मेघ के माध्यम से 'सम्वोधि' का जन्म हुआ । मेघ ने महावीर से सुना, समझा और श्रद्धा पूर्वक उसका अनुशीलन किया ।
मेघमुक्त हो गया । और भी जो इसे सुनेंगे, समझेंगे और आचरण करेंगे वे भी मुक्त होंगे। हम सबके अन्तस्तल में सच्ची प्यास प्रकट हो और हम महावीर. के पवित्र चरणों में अपने आपको सहज भाव से समर्पित कर उस परम सत्य का रसास्वादन करें ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org