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४०४ : सम्बोधि
कायोत्सर्ग करना, आसन करना, आतापना लेना, निर्वस्त्र रहना, शरीर का परिकर्म नहीं करना, यह सब काय - क्लेश है ।'
शरीर की आदत न होने के कारण यह सब उसे कष्टपूर्ण प्रतीत होता है । इसलिए इसे काय - क्लेश कहा है। ध्यान की स्थिति में सबसे बड़ी बाधा शरीर की होती है । थोड़ी सी देर स्थिर बैठना सम्भव नहीं है । कभी पैरों में दर्द, सनसनाहट खुजली आदि विविध प्रकार की सूचनाएं प्राप्त होने लगती हैं । ध्यान निर्विघ्न नहीं होता । शरीर को अभ्यास है विषयों का । ध्यान निर्विषय है, एकाग्रता है । जैसे ही वह एकाग्र होता है शरीर सहन नहीं कर सकता । शरीर का स्वामित्व मन और आत्मा पर सर्वदा चलता रहा। जब उस शासन की स्थिति पैदा होती है तब वह बगावत करना शुरू कर देता है । काय - क्लेश का मूल सूत्र है - देह पर स्वामित्व की स्थापना करना, देह की चुनौती झेलने की क्षमता पैदा करना, स्वयं का मालिक स्वयं होना, इन्द्रिय, मन और शरीर के शासन से मुक्ति पाना । साधना का यही सार है ।
(६) प्रतिसंलीनता -
यह बाहर और भीतर के संक्रमण का द्वार है । इस का अर्थ है - अपनी समस्त वृत्तियों के मुख को बाहर से भीतर की ओर मोड़ना । चेतना की धारा इन्द्रियों के माध्यम से जो प्रतिक्षण बहकर प्रवाहित हो रही है, उसे मोड़कर अन्दर की तरफ गति देना । ' अणुसोय सुहो लोए - अनुस्रोत में चलना सरल है, सारा संसार चल रहा है । किन्तु प्रतिस्रोत मूल उद्गम की ओर नदी का बहना कठिन है । प्रति-संलीनता उद्गम की ओर प्रयाण है । यह संसार का पार है । अनुस्रोत पार नहीं है, संसार है, चक्र है । अनन्त जन्मों से बहार जाने का जो अभ्यास है, प्रतिसंलीनता उसे तोड़ती है यह पुनः अपने में संलीन होने का सूत्र है ।
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चित्त चेतना से जुड़ता है तब सचेतन होता है और बिछुड़ा है तब जड़ । हमारा चित्त प्रायः यन्त्रवत् है । चेतना से उसका सम्पर्क बहुत कम रहता है । महावीर ने कहा- 'अगेणचित्ते खलु अयं पुरिसे" - मनुष्य अनेक चित्तवाला है । चेतना से जुड़े रहने वाला चित्त बहुत नहीं होता । एक साथ अनेक काम करना अनेक चित्तता की सूचना है। जीवन में जो कुछ चलता है वह सब यान्त्रिकता है । पश्चिम के विचारशील व्यक्ति कोलीन विल्सन ने कहा है – जब हम कुशल हो जाते हैं तो हमारे भीतर जो एक रोबोट - यंत्रमानव है वह काम शुरू कर देता है | चेतना की उपस्थिति अनिवार्य नहीं होती है । हर रोज घर से बाहर और बाजार से घर यातायात करते हैं । कुछ सोचना, विचारना और देखना नहीं पड़ता, किन्तु जैसे ही कहीं अपरिचित स्थान में जाते हैं वहां सतर्क होना पड़ता है ।
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