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अध्याय ५ : १०३
योग की अनेक शाखाएं हैं, जैसे-हठयोग, राजयोग, मन्त्रयोग, लययोग आदि। इनकी अनेक अवान्तर शाखाएं भी हैं । सभी का ध्येय है-आत्मा का पूर्ण विकास । अहिंसा यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का एक अंग है। संक्षेप में शेष सब अहिंसा की परिक्रमा करते हैं, इसलिए मुख्यतया इसे ही मुक्ति का अनन्य अंग माना है। ऐसे तो जितने ही साधन हों वे सब सत्य से अनुस्यूत हों तो सब मुक्ति के ही अवयव हैं।
अहिंसा में शेष विभागों का इसलिए समावेश हो जाता है कि अहिंसापूर्ण जागरूकता 'Awareness' की स्थिति है। अहिंसा का साधक बेहोशी को स्वीकार नहीं कर सकता। होश की लौ उसे प्रतिक्षण जलाए रखनी होती है। जहां होश है वहां हिंसा, असत्य को कैसे अवकाश मिल सकता है ? होश से ही स्व- . स्मृति का दीप जल उठता है। होश ही प्रार्थना है। उर्दू के किसी कवि की वाणी है
'माइले दैरो हरम तूने यह सोचा भी कभी
जिंदगी खुद ही इबादत है अगर होश रहे।''ओ मंदिर मस्जिद की तरफ झुकने वाले ! क्या तूने इस पर कभी विचार किया है कि अगर होश- सावधानता हो तो जिंदगी खुद ही प्रभु की प्रार्थना है। - आचार्य हरिभद्र उसी अप्रमत्तता-जागरूकता को ध्यान में रखते हुए कहते हैं-'संयत-सोपयुक्त साधकों का समस्त व्यापार योग है, क्योंकि वह मोक्ष से योग कराता है।
श्रुतं चारित्रमेतच्च, द्वयङ्ग-स्त्र्यङ्गः सुदर्शनः । सतपाश्चतुरङ्गः स्यात्, पञ्चाङ्गो वीर्यसंयुतः ॥२१॥ १५. धर्म के दो, तीन, चार और पांच विभाग भी किए जाते
हैं
(१) श्रुत और चारित्र—यह दो प्रकार वाला धर्म है।
(२) श्रुत (ज्ञान), चारित्र, और दर्शन -यह तीन प्रकार वाला धर्म है ।
(३) श्रुत, चारित्र दर्शन और तप-यह चार प्रकार वाला धर्म है।
(४) श्रुत, चारित्र, दर्शन, तप और वीर्य--यह पांच प्रकार वाला अर्म है। १ विस्तार के लिए देखें १२ वा अध्याय तथा परिशिष्ट १ ।
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