Book Title: Sambodhi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 478
________________ (३) रोग-शमन की आकांक्षा । ( ४ ) ऐहिक तथा पारलौकिक विषयों की लोलुपता । साधारण तथा व्यक्त या अव्यक्त रूप से समस्त प्राणी जगत् में इनका दर्शन होता है । वशिष्ठ जैसे ऋषि भी पुत्र शोक में विह्वल हो जाते हैं । लक्ष्मण ने यह देखकर राम से पूछा – वशिष्ठ को कैसे शोक है ? राम कहते हैं - लक्ष्मण इसमें क्या आश्चर्य है ? जिसे ज्ञान है उसे अज्ञान भी है । तुम ज्ञान और अज्ञान दोनों के पार जाओ। कांटे से कांटा निकाला जाता है और फिर दोनों को फैंक दिया जाता है । प्रिय-वियोग की यह स्थिति है, वैसी ही अप्रिय संयोग की है। जो हम नहीं चाहते उसका मिलन भी विषाद उत्पन्न करता है । रोग जीवैषणा पर प्रहार है, अप्रिय है । उसे भी समत्वपूर्वक सहना कठिन है । बड़े-बड़े व्यक्तियों का धैर्य विचलित हो जाता है । विषयों के आकर्षण और विकर्षण – यह चाहिए और यह नहीं चाहिए की व्यथा भी क्या कम है ? परिशिष्ट - १ : ४१५ रौद्र ध्यान रौद्र शब्द का अर्थ है - क्रूरता । जिसका आशय - चित्त क्रूर होता है, जो प्रतिशोध का भाव रखता है, हिंसा की भाव-धारा सतत बहती रहती है, दूसरों को गिराने, कुचलने में जिसे रस रहता है । असत्य, चोरी, संग्रह, दूसरों को ठगने में जो कुशल होता है, वह रौद्र ध्यान का अधिकारी है। इसमें चित्त की भयंकर विलक्षणता रहती है । मनुष्य अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए क्या अकार्य आज नहीं करता ? आजीविका के लिए जिन अनैतिक कार्यों की बात सुनते हैं, पढ़ते हैं वह सब धनलिप्सा का क्रूरतम परिणाम है । इसी प्रकार राजनैतिक क्षेत्र में सत्ता को बनाये रखने के लिए, तथा उसे समाप्त करने के लिए अनवरत चिन्तन और निकृष्टतम उपायों का प्रयोग क्या चित्त की कलुषता के द्योतक नहीं हैं ? असत्य के लिए हिटलर प्रसिद्ध है, जिसने एक सूत्र का प्रयोग किया और कहा -- "एक झूठ को बार-बार दोहराने से वह भी सत्य जैसा प्रतीत होने लगता है । " झूठ कैसे बोलना ? हिंसा कैसे करनी ? चोरी का आयोजन कैसे करना ? आदिआदि प्रवृत्तियों में जो चिन्तन, एकाग्रता है वह सब रौद्र ध्यान का परिणाम है । इनमें परिणामों की क्लिष्टता अनवरत चलती रहती है । वह शांत नहीं होती । एक पिता मरणासन्न था । पुत्र पास खड़े थे । उसने कहा बस एक इच्छा है । क्या तुम उसे पूरी करोगे ? वचन दो । पिता की प्रवृत्ति से सब परिचित थे । सब मौन खड़े रहे | सबसे छोटे पुत्र ने कहा - पिताजी, कहिए, मैं पालन करूंगा । पिता ने कहा – मेरे मरने पर शरीर के टुकड़े कर थाने में सूचना देना कि अमुक पड़ोसी ने मेरे पिता को जीवित अवस्था में शांति से नहीं रहने दिया और मरने पर भी उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले । । 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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